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________________ 14 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र होकर वे विवाह करने को तैयार हो गए। विवाह के समय पुरोहित ने जब 'वरवधू सावधान' शब्दों का उच्चारण किया तभी उसी क्षण विवाहमंडप में से उठकर रामदास भाग निकले और उन्होंने संन्यास दीक्षा ग्रहण कर ली। 'सावधान' शब्द ने उनकी मोहनिद्रा समाप्त कर दी और . उन्हें जगा दिया। विवाह की विधि पूरी होने के बाद रानी गुणावली ने अपनी सास वीरमती से कहा, 'हे माताजी, क्या आपने वरराजा को पहचाना नहीं ? मुझे तो ऐसा लगता है कि प्रेमलालच्छी के साथ अभी जिस वरराजा का विवाह हुआ, वे आपके ही पुत्ररत्न हैं।" वीरमती को गुणावली की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। इसलिए उसने गुणावली की बात सुनकर भी कुछ नहीं कहा। लेकिन गुणावली का चित्त चिंता से घिर गया / इसलिए उसने फिर से अपनी सास से कहा, "माताजी, जरा सावधानी से देखिए। आपको मेरी बात की सच्चाई मालूम पड़ जाएगी। मेरे पतिदेव आभानरेश ने ही यहाँ आकर इस राजकन्या से विवाह कर लिया है। अब मेरे पतिदेव प्रेमलालच्छी को मेरी सौत बनाकर राजमहल में ले आएँगे। : हमारी तरह वे भी चाहे किसी भी तरह से क्यों न हो, लेकिन यहाँ आ पहुंचे हैं। माताजी, इस कारण से मेरे मन में बहुत चिंता और भय उत्पन्न हो रहा है।" बहू गुणावली की बात सुन कर सास वीरमती ने उससे कहा, “बहू, तू तो भोली की - भोली ही बनी रही। तेरा पति यहाँ कहां से और कैसे आ सकता है ? अरी, वह तो आभापुरी में - अपने महल में गाढ़ी नींद सो रहा है। वहाँ से जागकर यहाँ आने की उसकी हिम्मत नहीं है। मैंने तो तुझ से पहले ही कहा था कि चंद्र से भी अधिक रुपसुंदर पुरुष इस धरती पर अनेक हैं। इसी का प्रमाण यह राजकुमार कनकध्वज हैं / तू बार-बार ‘चंद्र चंद्र' क्या कहती जा रही है ? लगता है कि तुझे तो सभी पुरुष तेरा पति चंद्र ही दीखते हैं। बहू, मैंने तो तेरे पति चंद्र को अपनी मंत्र शक्ति से ऐसे निद्राधीन कर दिया है कि वहाँ से जागने की तो बात ही छोड़ी, लेकिन आँखें खोलने की भी उसमें ताकात नहीं हैं। जब हम यहाँ से आभापुरी लौट जाएँगी और जब मैं अपने दूसरे मंत्र का प्रयोग करूँगी, तभी तेरा पति चंद्र और रास्ते पर ही निद्राधीन हुए नगरजन निद्रादेवी के पंजे से छूट सकेंगे। - इसलिए बहु, मेरी बात पर विश्वास रख ले और अपने चित्त में से चंद्र की चिता हटा। -दे। इस भूतल पर अनेक रुपवान् पुरुष होते हैं।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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