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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 75 सी वीरमती के सामने अपनी हार मान लेने के सिवाय गुणावली के पास अन्य कोई रास्ता नहीं था इसलिए वह मौन तो हो गई, लेकिन उसके चित्त में से चिंता नष्ट नहीं हुई / इसके विपरीत वह जैसे-जैसे ध्यानपूर्वक देखती गई, वैसे-वैसे उसके मन की आशंका द्रढ़ होती गई। उधर विमलापुरी-नरेश मकरध्वज वरराजा को देखकर अपने भाग्य की प्रशंसा करने लगा। ऐसे कामदेव के समान रुपसुंदर दामाद को पाकर वह फूला न समाया। राजा मकरध्वज अपने मन में सोचने लगा कि ऐसे सुंदर पुरुष का निर्माण विधाता ने कैसे किया होगा ? मेरी पुत्री को अत्यंत अनुरुप वर प्राप्त हुआ है। मेरे मन में बस यही एक अभिलाषा है कि परमात्मा इस नवदंपती को निरंतर सुखी रखे। प्रसन्नचित हुए राजा मकरध्वज ने 'करमोचन' विधि के अवसर पर वर को विविध मूल्यवान् वस्तुएँ उपहारस्वरुप समर्पित कर अपनी उदारता का परिचय दिया। इस तरह विवाहविधि संपन्न हो गई। प्रेमलालच्छी राजकुमारी ने कब पहली बार अपने पति के सुखारविंद का अवलोकन किया और वह अत्यंत खुश हो गई / ऐसा अनुपम पति दिलाने के लिए उसने परमात्मा के प्रति कृतज्ञ भाव प्रकट किया। इस संसार में मनुष्य के जीवन में सुख निरंतर बना नहीं रहता। घड़ी में सुख होता है, तो घडी में दु:ख / सुख-दु:ख की धूपछाँह का यह खेल बराबर चलता रहता हैं / नवविवाहिता प्रेमलालच्छी की अचानक दाहिनी आँख फरक उठी। उसके मन में तुरन्त किसी अशुभ घटना की आशंका निर्माण हुई / लेकिन यह बात उसने किसी से नहीं कही। विवाह समारोह निविंधन रीति से संपन्न होने के कारण सिंहलनरेश मकरध्वज ने याचकोंको मुक्तहस्त से दान दिया, स्वजनों को पुरस्कार प्रदान किए और सबको प्रसन्न कर दिया। फिर विवाह समारोह के उपलक्ष्य में आनंदोत्सव प्रारंभ कराया गया। विवाहविधि समाप्त हो जाने के बाद नवदंपती को विशेष रीति से तैयार किए और सजाए हुए विशाल विलासभवन में मनोरंजन के लिए भेजा गया। वहाँ सुवर्ण के पाँसे सज्जित करके रखे गए थे। वर वधू अब एक दूसरे के साथ पाँसे से खेलने लगे। यह खेल खेलतेखेलते चंद्रराजा ने समस्या के एक पद का उच्चारण किया - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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