________________ 64 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र इस पर विमलापुरी से आए हुए चारों मंत्री बोले, “महाराज, इस संबंध के बारे में हमारे महाराज अत्यंत उत्सुक हैं। इसीलिए तो उन्होंने इतनी दूर हमें यहाँ आपके पास भेजा है। आप हमारीप्रार्थना को अस्वीकार कर हमें निराश मत कीजिए, यही हमारी विनम्र प्रार्थना हैं।" सिंहलनरेश ने कहा, "अभी हमारा पुत्र बहुत छोटा है। इसलिए इतनी जल्द उसके विवाहसंबंध की चर्चा करना हमें समयोचित्त नही लगता है। अभी हमारे राजकुमार ने राजमहल भी नहीं देखा है। हमने उसे अपने पास बीठा कर खिलाया भी नहीं है। दूसरी बात यह है कि अभी हमने राजकुमारी को देखा भी नहीं है। कन्या को देखे बिना विवाह संबंध निश्चित कैसे किया जा सकता है ? यदि आपके महाराज अपनी कन्या का विवाह करने को इतने उतावले है तो आप लोग अपने महाराज को राजकुमारी के लिए कोई दूसरा वर ढूँढ लीजिए। आपके ऐसा करने पर मुझे कोई आपति नहीं है।" राजा की बात सुन कर मंत्री बोले, “नहीं, नहीं महाराज। ऐसा मत कहिए। अगर ऐसा हो, तो हम यहाँ कुछ दिन और रूकने को तैयार हैं। आप अवश्य विचार कीजिए और फिर हमें - अपना निर्णय बताइए।" अब कनकरथ राजा ने अपने मंत्री को अपने पास बुलाया और उससे पूछा, “मंत्री, इस काम में हमें क्या करना चाहिए ? विदेशी लोगों को यहाँ कितने दिन रोक कर रखेंगे ? कोढी पुत्र के साथ रूपवती कन्या का विवाह कराना गलत है, मुझे यह बिलकुल उचित नहीं जान पड़ता है। अपने स्वार्थ के लिए किसी को प्रिय कन्या का सारा जीवन क्यों बिगाड़ा जाए ? इस संसार में कपट से बढ़ कर बड़ा पाप अन्य नहीं है / कपट पुण्यरूपी वृक्ष का उन्मूलन कर डालनेवाली कुल्हाड़ी है। इसलिए जानबूझ कर किसी की देवकन्या जैसी सुंदर पुत्री का अपने कोढ़ी पुत्र से विवाह कराना मुझे बिलकुल उचित नहीं झुंचता है। यदि मैं कपट कर के किसी कन्या का जीवन बिगाड़ दूँ तो अगले जन्म में मुझे इस पापकर्म का कटु फल अवश्य भोगना पड़ेगा। यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूँ। अनिष्ट कार्य करके इष्ट लाभ भले ही किसीको मिलता हो, लेकिन वह कार्य करनेवाले की गति कभी शुभ नहीं हो सकती। विष के संसर्ग से युक्त अमृत मृत्यु लानेवाला ही तो होता है। इसिलिए इस दुष्ट कार्य से दूर रहने में ही भलाई हैं।" L P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust