________________ 65 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र _ इतना कह कर राजा ने मुझे मेरी सलाह क्या है यह पूछा। मैंने राजा को बताया, “कुमार क कुष्ठ रोग की जानकारी अभी तक किसी को नहीं है। फिर यदि यह बात अगोपनीय थी तो फिर अब तक कुमार को गुप्त गृह में रख कर उसकी रक्षा ही क्यों की ? आपको पहले से ही मिथ्या बातें प्रचारित नहीं करनी चाहिए थी ! मिथ्या प्रचार करते रहने के बाद अब घबराने से क्या लाभ होगा ? दूसरी बात यह है महाराज, कि जब तक मनुष्य का पुण्योदय होता है, तब तक उसका अयोग्य कार्य भी संसार में योग्य ही माना जाता है। जबतक भाग्य अनुकूल होता है, तब तक शांति के उपाय अपने आप मन में आ जाते है। इस समय आपका भाग्य अनुकूल जान पड़ता है, इसलिए कुमार के कृष्ठ रोग की शांति का उपाय भी मिल सकेगा। बेचारे मकरध्वज राजा के मंत्री इतनी दूर से यहाँ कनकध्वज कुमार से अपने राजा की राजकुमारी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए है; उनको निराश कर लौटा देने में मुझे बुद्धिमानी नहीं दिखाई देती। यह संबंध उत्तम है। फिर से ऐसा अवसर आना कठिन हे / कुमार के कुष्ठ रोग के निवारण के लिए फिर एक बार कुलदेवी की आराधना करनी चाहिए। देवी के प्रसन्न होने से कुमार का कुष्ठ रोग से मुक्त होना संभव है। इसलिए महाराज, ज़रा हिंमत से काम लीजिए / फ़िर ऐसे अवसर पर झूठ बोलना पड़े तो कोई दोष नहीं है / जैसे चोरों को भी सहायता करने वाले मिल जाते है, वैसे हमें भी इस काम में कोई-न-कोई मददगार अवश्य मिल जाएगा। इसलिए यह संबंध निश्चित करने में आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। सब ठीक हो जाएगा, महाराज!" मेरी बातें सुन कर राजा ने मुझसे कहा, “मंत्रीजी, यद्यापि इस अनुचित कार्य के लिए मरा बिलकुल अनुमति नहीं है, फिर भी मैं इस काम में बाधक नहीं बनता। तुम्हें जैसा उचित लगे, वैसा करो। जो जैसा कर्म करेगा, उसे उसका फल अवश्य भोगना पड़ेगा।" अंत में राजा ने इस विवाह के बारे में सबकुछ मुझको सौंपा। कुछ दिन बीत गए। मकरध्वज राजा के मंत्री फिर एक बार राजा की सेवा में राजसभा में उपस्थित हुए। उन्होंने हमारे राजा से कहा "हे प्रभो, इतने सारे दिन विचार करने में बिताने के बाद भी, आपने अब तक हमें अपनी कोई निर्णय नहीं बताया। महाराज, विवाह की बातों में दोनों पक्षों की इच्छा से ही काम होता है, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust