________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरिआधी रात बीत जाने के बाद आपको यहाँ एक बहुत महत्वपूर्ण काम करना है। यदि आ स्वीकृति दे दें, तो फिर मैं बता दूं कि हमें आपसे कौन सा काम करवाना है। राजा चंद्र दुविधा में फँस गया कि अब क्या किया जाए। मंत्रो की प्रार्थना स्वीकार कर चाहिए या नहीं ? कुछ देर विचार कर राजा चंद्र ने मंत्री की प्रार्थना स्वीकार कर ली और कह "मंत्री, बताइए आप लोग मुझ से कौन-सा काम करवाना चाहते हैं ?" . राजा चंद्र की स्वीकृति जानकर सिंहलनरेश अत्यंत खुश हुआ और उसने अप महामंत्री हिंसक को काम बताने के लिए संकेत किया। .. __अपने राजा से संकेत पाकर महामंत्री हिंसक ने राजा चंद्र से कहा, “हे चंद्र नरेश, छालेने जाने पर बरतन छिपाना मूर्ख का काम है। आपके सामने बात करते समय लज्जा . संकोच करना हमें उचित नहीं लगता है।" ... चंद्र राजा समझ नहीं पा रहा था कि इन लोगों का कौनसा काम मुझे करना होगा ? व काम मुझसे हो सकेगा या नहीं, यह भी पता नहीं हैं। मैंने पहले इन लोगों से पूछा भी नहीं दि आप लोग मुझसे कौन-सा काम करवाना चाहते हैं / अब मैंने राजा और मंत्री दोनों को सब सामने काम करने का वचन भी दे दिया है। अब मेरी स्थिति शिकारी के जाल में फंसे हुए पंछ के समान हो गई है। अब यहाँ से छूटने का दूसरा कोई रास्ता भी दिखाई नहीं देता है / देवी / वचनों से जब इन लोगों ने मुझे राजा चंद्र के रूप में पहचान लिया है, तो अब मैं कितनी ही बा बना-बना कर कहूँ तो इन लोगों को मेरी बातों की सच्चाई पर विश्वास नहीं होगा। मैं आभानरे: राजा चंद्र के रूप में पूरी तरह पहचान लिया गया हूँ। अब किसी तरह से ऐसा नहीं लगता दि ये लोग मेरा पीछा छोडेंगे। ... इस तरह मन में सोच कर चंद्र राजा ने हिंसक मंत्री से कहा, "हे मंत्री, जी कुछ भी का हो, स्पष्ट रूप में बता दीजिए / यदि मुझसे बनसके तो मैं आपके राजा का काम अवश्य क दूंगा।" राजा चंद्र की बात से प्रभावित हुए सिंहलनरेश ने कहा, "हे आभानरेश, आप जै परोपकारी पुरुषों को जन्म देनेवाली माताएँ विरली ही होती है ! जहाँ अपना स्वार्थ सिद्ध हो की स्थिति होती है, वहाँ मनुष्य दूसरे की खुशामद करने में चाटुकारिता में मीठी-मीठी बातें कर में बिलकुल संकोच नहीं करता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust'.