________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र -ड़ से खिसक जाना भी बहुत कठिन दिखाई देता है / यहाँ मैं बिलकुल अकेला हूँ, न्य हूँ। यह नगर पराया है और ये सारे सैनिक भी मेरे लिए पराए है, अपरिचित हैं। इनमें मे समझाना भी कठिन काम है। इसलिए अब आगे जो होना हो, होगा, मैं एक बार इन के साथ सिंहलनरेश के पास चला तो जाऊँ ! हो सकता है कि इनके साथ जाने से कुछ . भी हो जाए।' __ इस तरह से मन में निश्चित करके राजा चंद्र ने द्वारपालों से कहा, "चलो, मैं तुम्हारे राजा स आता हूँ।" __जैसे-जैसे राजा चंद्र द्वारपालों के साथ सिंहलनरेश के पास जाने को चल पड़ा, तो रास्ते ब्यान-स्थान पर सिंहल के राजा के सेवक राजा चंद्र को झूक-झूक कर प्रणाम करते रहे। वे राजा चंद्र की जय जयकार के नारे भी लगाते जा रहे थे। उनके नारों की ऊँची आवाज से - का वातावरण गूंज उठा था। द्वारपालों के साथ राजा चंद्र के सिंहलनरेश के राजभवन तक चते-पहुँचते तो वहाँ एक भारी भीड इकट्ठा हो गई। रास्ता सँकरा प्रतीत होने लगा, आनेने को जगह ही नहीं मिल पा रही थी। इसलिए द्वारपालों ने बड़ी कठिनाई से मार्ग निकालकाल कर राजा चंद्र को सिंहलनरेश के राजभवन के भीतर पहुँचाया। इधर राजा चंद्र के सिंहलनेरश की ओर चल पडते ही सेवकों ने एक सेवक को भेज कर पने महाराज को संदेश दे दिया था कि आभानरेश चंद्र पधार रहे हैं। इसलिए सिंहलनरेश जा चंद्र का भव्य स्वागत करने की तैयारी में लगा था। राजा चंद्र के राजमहल में प्रवेश करते... विजयवाद्यों की ऊँची ध्वनियों से आकाश गूंज उठा। ताशे-बाजे के साथ सामने आकर . हलनरेश ने राजा चंद्र का स्वागत किया और उसने राजा चंद्र को राजभवन में ले जाकर उसे ... चा सुवर्णासन बैठने के लिए दिया। फिर सिंहलनरेश ने राजा चंद्र का स्वागत करते हुए . . "हे आभानरेश, आपके चरणकमलों के स्पर्श से आज हमारी जिंदगी धन्य-धन्य हो गई .. आपके पवित्र और दुर्लभ दर्शन पाकर मैं भी अपने आप को कृतार्थ समझ रहा हूँ। बहुत बे समय से आपके दर्शन करने की अभिलाषा मेरे मन में थी, आज वह पूरी हो गई है। यद्यपि .... पशरीर से मुझ से 1,800 योजन दूर थे, लेकिन मन से आप मेरे हृदय में ही बसे हुए थे। जैसे / में हजारों योजनों की दूरी पर होने पर भी कमलवन को उल्लासित करता है, वैसे ही आपका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust