________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र द्वारपाल के साथ चलते हुए चंद्र राजा जब नगरी के दूसरे दरवाजे के पास आया, तो वहाँ होनेवाले द्वारपाल और अन्य कर्मचारियों ने चंद्र राजा को विनम्रता से प्रणाम कर कहा, "हे राजन्। आपका स्वागत हो! हमारे महाराज रास्ते में आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। जैसे चक्ररल के प्रकट होने से चक्रवर्ती के सभी मनोरथ सफल हो गए हैं।" लेकिन चंद्र राजा को द्वारपालों और कर्मचारियों की बातें पसंद नहीं आई। इसलिए चंद्र राजा ने आगबगूला होकर कहा, “तुम सब लोग मुझे 'चंद्र राजा, चंद्र राजा' क्यों पुकार रहे हो ? क्या तुम सबने आज मिलकर धतूरे के पत्तों का भक्षण तो नहीं कर लिया, जिसे सबको सब सोना ही सोना दिखाई दे रहा ही। तुम्हारे महाराज का मेरे बिना ऐसा कौन रूकअटका पड़ा है कि तुम सब लोग ‘चंद्र-चंद्र' कहते हुए मेरे पीछे पड़े हो ? इसपर सिंहलनरेश के सेवकों ने चंद्रराजा से कहा, "हे राजन. हम यहाँ के राज सेवक हैं / हमें हमारे महाराज ने आपका स्वागत करने के लिए नियुक्त किया है। रज बताए हुए परिचय के अनुसार हमने निश्चत रूप से पहचान लिना है कि आप ही मनरेश -चंद्र है। इसलिए हम आप का स्वागत कर रहे है।" राजा चंद्र ने पूछा, “तुम किस आधार पर मुझे चंद्र कह रहे हो. बताओ!" द्वारपालों के प्रमुख ने कहा, "हे राजन्, हमारे महाराज ने पहले ही हमें बताया पुरुष रात का पहला प्रहर बीतने के बाद पूर्व दिशा के प्रवेशद्वार से नगरी में भारत और के पहले दो स्त्रियाँ उसी दरवाजे से नगरी में प्रवेश करेंगी, सी को आभा-रे में चाहिए। उस पुरुष के आते ही तुम उसे प्रणाम करो और सम्मान के साथ के उसे मेरे पास राजसभा में ले आओ / महाराज को आप से एक माना है। इसलिए जहां हमारे महाराज आपकी प्रतीक्षा करते हुए बैठे हैं औ र चलिए / आपके महाराज से मिलने से उनके मन को शांति मिलेगा। स मय पर मालूम नहीं है कि महाराज को आपसे क्या जरूरी काम है। mir in Paree होने पर ही इस बात का निश्चित रूप से पता चलेगा।" द्वारपाल-प्रमुख की बातें सुन कर राजा चंद्रबकी निकोप . IN तक तो मुझे सिर्फ अपनी माताजी से भय था, लेकिन | Inf (र हो गया। सिंहलनरेश के पास पहँचने पर क्या होगा | मानो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust