________________ 48 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कस्तूरी की सुगंध छिप कर रह सकती है ? महाराज, मैं बिलकुल भ्रम में नहीं पड़ा हूँ। मैंने आपको अच्छी तरह पहचान लिया है। आप ही आभानरेश राजा चंद्र है।" इतना कह कर द्वारपाल ने राजा चंद्र का हाथ पकड़ा और कहा, “हे आभानरेश, आप __ मेरे साथ राजमंदिर में पधारिए।" पकड़ रहा हैं ? तुझे जो कुछ भी कहना हो, वह दूर रह कर कह दे। मुझे लगता है कि तू अवश्य भ्रम में पड़ गया है। मुझे चंद्र राजा समझ कर व्यर्थ ही तू मुझे राजमंदिर में ले जाने का दुराग्रह कर रहा है। देख भाइ। यदि तुझे पैसे की जरुरत हो तो बोल, मैं तुझे उतना पैसा दूँगा, जितना तू चाहेगा। लेकिन इस तरह गलत तरीके से मुझे रोक कर मेरा समय खराब मत कर / मेरी माँ मेरी बाट जोह रही होगी। मेरे भाई, मुझे जाने दे !" इस पर द्वारपाल ने कहा, “महाराज, आपकी माताजी, आभापुरी से 1,800 योजन दूर यहां कहाँ से और कैसे आएगी ? इसलिए झूठमूठ की मनगढन्त बातें मत कीजिए / राजाजी, कृपा कीजिए और मुझ पर गुस्सा मत कीजिए। यदि आप जैसे सज्जन असत्य बोलने लगे, तो यह धरती इतना बड़ा बोझ कैसे धारण करेगी ? महाराज, मेरा अबतक का सारा जीवन आप जैसे उत्तम पुरुषों की सेवा में ही व्यतीत हुआ है। आपको देखते ही मैंने आपको बहुत अच्छी तरह पहचान लिया है। मैं बिलकुल भ्रम में नहीं पडा हूँ, महाराज / हमारे महाराज आपके दर्शन के लिए अत्यंत उत्सुक हैं। इसलिए आप मेरी प्रार्थना स्वीकार कीजिए और मेरे साथ महाराज के पास चलिए। चलिए न महाराज, क्यों देर कर रहे हैं ?" पर व्यर्थ चला गया, तो वीरमती और गुणावली मुझसे दूर-दूर चली जाएँगी। फिर उन दोनों के आगे के कारनामें देखना कठिन होगा। इसलिए इस समय इस द्वारपाल के साथ-साथ चुपचाप जाना ही उचित है / “इस प्रकार विचार कर के चंद्र राजा द्वारपाल के साथ राजमहल की ओर चल पड़ा। रास्ते में राजा के जो कर्मचारी मिले वे सब चंद्र राजा की विनम्रता से प्रणाम कर रहे थे। यह सब देख कर चंद्र राजा मन में सोच रहा था कि मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही हैं कि ये लोग मानो मुझे बहुत दिनों से पहचानते हो, इस ढंग से मेरे प्रति इतना आदर क्यों प्रकट कर रहे हैं ? चंद्र राजा के आश्चर्य का पार नहीं था। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust