________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 47 वातावरण विविध प्रकार के गीतो। नृत्यों और वाद्यों की मंगल ध्वनियों से गूंज रहा था। विवाहमंडप में वरवधू के पहुंचने में अभी कुछ समय था। इसलिए सासबहू दोनों एक कोने में बैठ कर विवाहमंडप की अद्भुत शोभा चारों ओर से देखती रहीं। इस प्रकार शोभा अवलोकन ___ करती हुई दोनों विवाहमंडप में खुशी से बैठी रहीं। लेकिन चंद्र राजा ने जैसे ही नगर के प्रवेश द्वारा में प्रवेश किया, वैसे ही द्वारपाल ने राजा को प्रणाम किया और उसकी जयजयकार की। द्वारपाल प्रणाम किया और उसकी जयजयकार की। द्वारपाल ने राजा को प्रणाम किया और उसकी जयजयकार की। द्वारपाल चंद्र राजा के साथ ऐसे खुल कर और प्रेम से बातें करने लगा, मानो दोनों पूर्वपरिचित हों / द्वारपाल के इस बर्ताव से चंद्र राजा के आश्चर्य का ठिकाना, न रहा। उसने सोचा, इतनी दूरी पर होनेवाले इस द्वारपाल ने मेरा नाम कहाँ से जाना होगा ? इतने में द्वारपाल ने राजा चंद्र से कहा, 'हे आभानरेश, आप सचमुच गुणों की खान हैं। आज यहाँ पधार कर आपने हमें सनाथ कर दिया है। आपके शुभागमन से हमारे महाराज की चिंता दूर हो गई है। इस उसी प्रकार उत्सुकता से आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसे कोई दूज के चंद्रमा की प्रतीक्षा करता है। अब आप कृपा कर सिंहलपुर के राजा के पास चलिए। हमारे महाराज के राजमहल को आप अपने पवित्र चरणकमलों से पावन कर दीजिए।" - द्वारपाल की ऐसी बातें सुनकर चंद्र राजा अपने मन में सोचने लगा - “हैं ! यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि यह द्वारपाल मेरा नाम भी जानता है। लेकिन ऐसा लगता है कि यह भ्रम में पड़ गया है। शायद यह किसी अन्य ‘चंद्र' नामक मनुष्य की प्रतीक्षा कर रहा है और मुझे ही वह 'चंद्र' समझ कर मेरे साथ बातें कर रहा है।' इसलिए चंद्र राजा ने द्वारपाल को समझाते हुए कहा, "हे द्वारपाल, चंद्र तो आकाश में रहता है। तू किस चंद्र की बात कर रहा है ? मुझे इस नगर में एक बड़ा काम करना है। इसलिए मुझे मतरोक, मुझे तुरन्त जाने दे। इस तरह किसी अनजान पथिक को प्रवेशद्वारा में रोकना उचित नहीं है।" चंद्र राजा की बात सुन कर हाथ जोड कर द्वारपाल ने कहा, “हे आभानरेश, आप, अपने आपको क्यों छिपा रहे हैं ? क्या चिंतामणि रत्न को कहीं छिपाया जा सकता हैं ? क्या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust