________________ 46 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र गुणावली ने कृतज्ञता जताते हुए कहा, “नहीं माँ जी, आपके प्रताप से ही आज मुझे जीवन में पहली बार ऐसे अद्भुत तीर्थक्षेत्रों के दर्शन और वंदन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।" बहू की बातें सुन कर सास की छाती गर्व से फूल उठी ! आकाशमार्ग से आगे की ओर जाते-जाते वीरमती ने गुणावली को बताया, “देख बहू, यहाँ नीचे नदी और सागर का संगम हो रहा है। यह लवणसमुद्र जंबुद्वीप की चारों ओर से घरे कर वलयाकार में पड़ा है। यह समुद्र विविध प्रकार के रत्नों का बहुत बड़ा भंडार है।" जब ये दोनों सास-बहू इस तरह बातें करती हुई आकाशमार्ग से चली जा रही थी, तो विमलापुरी की सीमा दूर से ही दिखाई देने लगी। वीरमती ने गुणवली को बताया, “देख बहू, यही है विमलापुरी ! यहाँ सामने ये मनोहर उपवन हैं, अत्यंत रमणीय सरोवर हैं, आकाश को चूमनेवाले ये ऊँचे-ऊँचे महल और मकान हैं। ये सब दर्शकों का चित्त हरण करने में समर्थ हैं। यह विमलापुरी स्वर्गपुरी से भी प्रतिस्पर्धा करनेवाली मनमोहिनी नगरी है। इसी विमलापुरी की शोभा देखने के लिए हम दोनों आकाश मार्ग से 9,800 योजन दूर चली आई हैं।" जब गुणावली विमलापुरी की शोभा दूर से ही अपनी आँखों में भरती जा रही थी, तो दोनों आम्रवृक्ष के साथ विमलापुरी के उद्यान के ऊपर आई / उद्यान के ऊपर आम्रवृक्ष के आ पहुँचते ही वीरमती ने उसे वहीं उद्यान में नीचे उतरने का आदेश दिया। आदेश होते ही आम्रवृक्ष अंबर पर से अवनि पर उतरा और विमलापुरी के उद्यान में खड़ा रहा। अब वीरमती और गुणावली आम्रवृक्ष की डाली पर से नीचे उद्यान में उतरी और दोनों विमलापुरी की ओर चल पड़ी। उनके उद्यान से बाहर निकलते ही आम्रवृक्ष के कोटर में से चंद्र राजा भी धीमे से बाहर निकल गया और छिपता-छीपाता उन दोनों के पीछे-पीछे विमलापुरी की ओर चलने लगा। वीर पुरुष सिंह की तरह निर्भय होते हैं / चंद्र राजा भी सिंह की तरह निर्भय होकर सासबहू की जोड़ी के पीछे चल पड़ा था। चलते-चलते सास-बहू की जोडी ने नगरद्वारा में प्रवेश किया। यहाँ तक तो चंद्र राजा उन दोनों के पीछे-पीछे ही चलता जा रहा था। नगर में प्रवेश करने के बाद नगरी की अपूर्व-अनुपम शोभा देख-देख कर सास-बहू दोनों आश्चर्यमुग्ध हो गई। फिर दोनों मिल कर विवाहमंडप में आ पहुँची / विवाहमंडप का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust