________________ 45 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र हैं। इस महातीर्थक्षेत्र पर ऋषभदेव भगवान निन्यानवे पूर्व बार पधारे थे, इसलिए इस तीर्थक्षेत्र की महिमा बहुत बढ़ गई है। इस तीर्थक्षेत्र की बराबरी कर सकनेवाला कोई तीर्थ तीनों भुवनों में नहीं है। इसी तीर्थक्षेत्र पर अब तक अनगिनत मुनिजन अनशन कर कर्ममुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर गए हैं और भविष्य में भी अनंत मुनिजन यहीं अनशन कर सभी कर्मो का क्षय करके निर्वाण पानेवाले हैं। इस तीर्थक्षेत्र के दर्शन अत्यंत पुण्यशाली भव्यात्मा को ही होते हैं। इस तीर्थक्षेत्र का उद्वार पहली बार भरत चक्रवर्ति ने कराया, दूसरी बार इसका उद्वार दंडवीर्य राजा ने कराया, तीसरा उद्धार ईशानइंद्र ने, चौथा उद्धार माहेन्द्र इंद्र ने, पाँचवाँ ब्रह्मेन्द्र ने छठाँ भवनपति के इंद्र ने, सातवाँ सगरचक्रवर्ती ने, आठवाँ व्यंतर इंद्र ने, नौवाँ चंद्रयशा राजा ने और दसवाँ उद्धार चक्रायुध राजा ने कराया था। वैसे तो अनेक महापुरुषों ने अनेक बार इस महातीर्थ का उद्धार कराया है। भविष्यकाल में दशरथ राजा के पुत्र राम इस तीर्थक्षेत्र का उद्धार कराएँगें। प्रिय बहू, यह महातीर्थ है। इसकी तीन बार वंदना कर / यह पवित्र तीर्थक्षेत्र संसारसागर पार कर जाने के लिए श्रेष्ठ जहाज के समान है। मनुष्य का प्रबल पुण्योदय होने पर ही उसे इस | तीर्थक्षेत्र के दर्शन-वंदन का अवसर प्राप्त होता है।" और थोड़ा दूर जाने पर रास्ते में नीचे गिरनार तीर्थक्षेत्र आया। वीरमती ने गुणावली को गिरनार तीर्थ दिखाते हुए कहा, “बहू, यह गिरनार तीर्थक्षेत्र है। यहाँ राजीमति के पति नेमनाथ स्वामी मुक्तिकन्या का पाणिग्रहण करेंगे। यह तीर्थ भी सिद्धाचलजी की तरह अत्यंत फलदायी है।" इसी तरह आम्रवृक्ष वायुवेग से विमलापुरी की ओर बढ़ता जा रहा था / बीच रास्ते में होनेवाले नए-नए अद्भुत और अनुपम तीर्थक्षेत्रों का शास्त्रपंडिता वीरमती बहू गुणावली को परिचय कराती जा रही थी। गुणावली का मन और नयन इन नए-नए तीर्थक्षेत्रों के दर्शन से हर्ष के कारण नाच रहे थे। चलते-चलते सास वीरमती ने अपनी बहू गुणावली से पूछा, “बहू, यदि तू अपने पति राजा चंद्र के डर से महल में चुपचाप बैठी रहती तो क्या तुझे ऐसे तरणतारण, अनुपम दर्शनीय तीर्थक्षेत्रों के दर्शन-वंदन का अवसर मिलता ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust