________________ 44 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ने अनेकबार समोवसरण की रचना की थी। भगवान ने यहाँ से अनेक बार धर्मदेशना दी थी - धर्मोपदेश किया था। भगवान का इस तीर्थक्षेत्र पर ही निर्वाण हुआ। यहीं पर भगवान के ज्येष्ट पुत्र चक्रवर्ति भरत ने सुवर्ण का बना रत्नजटित बड़ा मंदिर बँधाया था। यह मंदिर आकाश की ऊँचाई से प्रतिस्पर्धा करते हुए कैसे शोभित हो रहा है ! इस मंदिर के गर्भगृह में पूर्व दिशा में ऋषभदेव और अजितनाथ भगवान की रत्नजटित प्रतिमाएँ हैं / दक्षिण दिक्षा में संभवनाथ स्वामी आदि चार जिनेश्वरदेवों की रत्नजटित प्रतिमाएँ हैं, पश्चिम में सुपार्श्वनाथ स्वामी आदि आठ तीर्थकर देवों की और उत्तर दिशा में धर्मनाथस्वामी आदि दस तीर्थकर देवों की रत्नमय प्रतिमाएँ हैं / इन चौबीसों तीर्थकर देवों की समचतुरस्त्र उपनिवेश की, प्रशमरसमग्न और शिवसुंदरी का मंगल संदेश सुनानेवाली ये प्रतिमाएँ कितनी शोभायमान हो रही है, देख ले! इसी तीर्थक्षेत्र पर राजा रावण अपनी पटरानी मंदोदरी के साथ आया था। उसने भगवान के आगे भक्तिनृत्य कर तीर्थकर नामगोत्र बाँध लिया था। देख, इस पर्वत के आसपास वलयाकर में गंगा का पवित्र जल कलकल करता हुआ बहता जा रहा है। इस तीर्थक्षेत्र की यह सारी शोभा अपनी आँखों में भर ले।" आम्रवृक्ष वायुवेग से आकाशमंडल में आगे की ओर बढ़ता जा रहा था। बीच रास्ते में नीचे सम्मेतशिखर तीर्थक्षेत्र आया। वीरमती ने गुणावली का ध्यान उस ओर आकर्षित करते हुए कहा, ___ "प्रिय बहू, यह नीचे दिखाई दे रहा है न, यह तरणतारण (सब का उद्वार करनेवाला) सम्मेतशिखर तीर्थक्षेत्र है। उसकी वंदना कर ले। अब तक हुए सतरह (17) तीर्थकरों ने यहीं निर्वाण पाया है और बाकी बचे तीन तीर्थकर भी यहीं निर्वाण पानेवाले है !" __आम का पेड़ आगे बढता जा रहा था। आगे जाते जाते रास्ते में वैभारगिरि, आबू और सिद्धगिरि तीर्थक्षेत्र आए। वीरमती गुणावली को इन तीर्थक्षेत्रों का संक्षेप में परिचय कराती जा E रही थी। दोनों सास-बहू इन तीर्थक्षेत्रों को वंदना करती जा रही थीं। ऐसे ही बीच रास्ते में जब सिद्धाचल तीर्थक्षेत्र आया, तो वीरमती ने गुणावली को परिचय कराया, “देख बहू, यह त्रिभुवन में श्रेष्ठ सिद्धाचल तीर्थक्षेत्र है। इसके दर्शन मात्र से सभी जीवों के पाप तत्क्षण नष्ट हो जात P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust