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________________ 35 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र लेकिन क्या किया जाए ? एक राजा की पटरानी होने से वैसे तो मुझे सभी बातों का सुख प्राप्त है, लेकिन मुझे इस बात का दु:ख भी है कि मैं अपने महल के बाहर मुक्त रीति से कदम नहीं रख सकती। पतिदेव से पूछे बिना या उनको अनजान रख कर कहीं जाऊँ तो उसका परिणाम अच्छा नहीं निकलेगा। अगर मेरे पति मुझ पर क्रुद्ध हो गए तो मेरी क्या दुर्दशा होगी, आप अच्छी तरह जान सकती हैं / इसलिए पतिदेव की आज्ञा पाए बिना महल से बाहर निकलना मुझे पसंद नहीं है। मेरे ज्ञान के अनुसार इस दुनिया में पंछी, पवन और पुरुष-ये तीनों ही स्वतंत्र रीति से विचरण कर सकते हैं, लेकिन पराधीन स्त्री स्वतंत्र रीति से कहीं नहीं जा सकती!" वीरमती ने तुरन्त जान लिया कि बहू गुणावली के मन में देशाटन करके नई-नई चीजें देखने की इच्छा प्रबल रूप में जागी है। उसने मन में सोचा कि मैं जिस उद्देश्य से यहाँ आई थी, उसमें से आघा काम तो पूरा हो गया ! अब बाकी बचा हुआ काम उचित अवसर पाकर, यहाँ आकर पूरा कर लूँगी। यदि मैं इसी समय गुणावली पर बहुत दबाव डालूं, तो जो अभी कमाया, उस पर पानी फिर जाएगा, सब गड़बड़ हो जाएगा। उसे मेरे कपट का पता चलप जाएगा। _ 'धीरज का फल मीठा होता है / इस कहावत पर अमल करके इस समय अपने महल में लौट जाना ही अच्छा है। अवसर पाकर और फिर आकर, आज का अधूरा बचा हुआ काम पूरा कर लेने का संकल्प करके और गुणावली से विदा पाकर वीरमती अपने महल में लौट आई। कपटी मनुष्य कपट कला में कैसा प्रवीण होता है इसका आदर्श नमूना यह वीरमती है। महासती और अपने पति पर अपना सर्वस्व समर्पित करनेवाली गुणावली को वीरमती ने कैसे भ्रमजाल में फँसाया, यह इस उदाहरण में स्पष्ट दिखाई देता है। संगति का परिणाम कम या अधिक मात्रा में हुए बिना नहीं रहता है। कुछ दिन बीते / अवसर पाकर वीरमती फिर एक बार गुणावली के पास आ पहुँची। अब सास और बहू के बीच बहुत धीमां आवाज में बातें प्रारंभ हो गई। अपनी बहू को कपटजाल में फँसाते हुए सास वीरमती ने कहा, “हे भोली-भाली बहूं मेरी बेटी, क्या तू नहीं जानती है कि जो कार्य पुरूषों के लिए दुःसाध्य है, वही कार्य करने में स्त्रियाँ शक्तिमान होती हैं ? हरिहर ब्रह्मा भी स्त्रियों के अधीन हो गए थे। जितेंद्रिय मुनियों को स्त्रियों ने ही उनकी तप:साधना से भ्रष्ट कर दिया था। वास्तव में स्त्रियों को ऐसा पराक्रम कर दिखाना चाहिए कि महान् पुरुषों को भी अपनी पराजय स्वीकार कर लेनी पड़े ! स्त्रीचरित्र को जानने में कौन समर्थ है ? संसार में ऐसे पुरुष .... P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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