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________________ 34 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र भी तूने देशभ्रमण न किया, तो तेरा जीवन सचमुच निरर्थक है / फिर यह अवसर कब आएगा ? मैं जानती हूँ कि तू अपने मन की बात कहने में संकुचा रही है। लेकिन मैं यह भी जानती हूँ कि तेरे मन में देशाटन के लिए जाने की, अनेक देश देखने की उत्कंठा निर्माण हुई है। / मैं चाहती हूँ कि तेरी यह उत्कंठा तुरन्त पूरी हो / बहू, मेरे पास आकाशगामिनी विद्या जैस अनेक विद्याएँ है / इस आकाशगामिनी विद्या के बल पर एक क्षण में लाखों योजन दूर जाना संभव है / लाखों योजनों की दूरी पर से कुछेक घंटों में ही वापस आना भी संभव ही नहीं बिलकुल आसान है। यह सब इस तरह आसानी से होगा कि किसी को पता भी नहीं चलेगा कि हम हजारों योजन दूर कब गई और वापस कब लौट आई! देशाटन करने से अनेक लाभ मिल सकते हैं। नए-नए प्रदेशों के निवासियों के आचार देखने को मिलेंगे। नए-नए प्रदेश देखने को मिलेंगे, नए-नए पर्वत, वन, समुद्र, नदियाँ देखना संभव होगा। नए-नए राजा-महाराज और राजकुमार देखने को मिलेंगे। यह सब अपनी आँखों से देखने से नित्य नया आनंद मिलेगा, ज्ञानवृद्धि होगी, चतुराई बढ़ेगी, अनुभवज्ञान वृद्धिगत होगा। ऐसी ज्ञानसंपन्नता पाने पर भविष्य में कभी कोई हमें ठग नहीं सकेगा, छलकपट नहीं कर सकेगा, धोखा नहीं दे सकेगा ! मेरी बहू, यहाँ राजमहल में रहने से तुझे अच्छी-अच्छी चीजें खाना, पीना और श्रेष्ठ वस्त्रालंकार पहनना-ओढना इसके सिवाय किस बात का ज्ञान है ? देशदेशांतर में भ्रमण करने से वहाँ की नई-नई चीजें देख कर जीवन सफल हो जाता है।" रानी वीरमती की जानबूझकर बार-बार कही हुई ये बातें सुनकर गुणावली का मन भ्रमित हुआ। अब वह मन-ही-मन सोचने लगी, सचमुच मेरा जीवन कूपमंडूक जैसा है। मेरा जीवन किसी पशु की तरह पराधीन है। संसार में कब और क्या होगा, कौन जानता है ? लेकिन एक राजा की रानी होने से राजमहल के बाहर कदम रखना भी क्या संभव हें ? अब मन-ही-मन भ्रमित और दुःखी हुई गुणावली ने सास से कहा, - “माताजी, आपका कहना बिलकुल सच है ! देशाटन करने से अद्दष्ट वस्तुओं के दर्शन होंगे, ज्ञान वृद्धिगत होगा, चातुर्य बढ़ेगा, नए-नए तीर्थक्षेत्रों की यात्रा होगी। ये सारी बातें मैं जानती हूँ। लेकिन क्या मेरे लिए राजमहल के बाहर पाँव रखना संभव है ? मन में इच्छा होने पर भी मैं कहीं बाहर नहीं जा सकती हूँ। मैं स्त्री जाति को पराधीनता को समझ सकती हूँ, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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