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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र "मेरी प्रिय बहू, तू राजकुमारी है। मेरा पुत्र तेरा पति है। लेकिन तेरा जीवन पराधीन है। ‘पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं !' पराधीन को प्रसन्नता कहाँ से मिलेगी ? इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि तेरा जीवन तो भाररूप है। भले ही तू बड़े राजा की रानी है, लेकिन तेरा जीवन पराधीनता की बेड़ियों से जकड़ा हुआ है / मुझे तेरे जीवन में कोई आनंद नहीं दिखाई देता वीरमती के मुख से ऐसी उल्टी-सीधी बातें सुन कर आश्चर्यचकित हुई गुणावली झट से बोली, “माताजी, आप ऐसी अघटित-अनुचित बातें क्यों बोल रही हैं ? मुझे तो अपना जीवन बिलकुल भाररूप और पराधीन नहीं लगता है। आपकी और आपके पुत्र की छत्रछाया में मुझे किसी बात की कमी नहीं है। मैं सभी प्रकार से सुखी हूँ। मेरे मन में किसी तरह असंतोष नहीं है, मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ। उत्तम हाथी, सोने के रथ, अश्वरत्न, सुवर्ण और रत्नों के आभूषण, उत्तमोत्तम वस्त्र, रहने के लिए सात मंजिलोंवाला प्रासाद, सेवा के लिए सेकड़ों दास-दासियाँ जो मेरी हर आज्ञा का पालन करने को निरंतर उद्यत हैं - ये सारी बातें विद्यामान होते हुए मुझे किस बात का आभाव है ? मुझ पर आप जैसी माता और आपके पुत्र का पूरा प्रेमभाव है। इतना सब होने पर अब मुझे और क्या चाहिए ? माताजी, यहाँ मैं पानी माँगती हूँ, तो दूध मिलता है; आँख का इशारा करती हूँ तो दासियाँ हाथ जोड़ कर सेवा में उपस्थित हो जाती हैं ! माताजी, मैं मानती हूँ कि इस पृथ्वी पर मुझ जैसी सुखी स्त्री अन्य कोई नहीं होगी!" / गुणावली की बातें सुन कर कुटिल स्वभाव की वीरमती गुणावली का हाथ पकड़ कर बोली, “बहू, तू सचमुच बड़ी सरलस्वभाव की स्त्री है। इसीलिए मेरे कहने का भाव तेरी समझ में बिलकुल नहीं आया। संसार में चतुराई ही मुख्य होती है / मूर्ख मनुष्य धनवान् और रूपवान् होते हैं, लेकिन चतुराई के बिना वे भी अपना इच्छित कार्य सिद्ध कर लेने में समर्थ नहीं होते हैं / तू तो सिर्फ अच्छे-अच्छे वस्त्रालंकार पहनने और मधुर बोलने में ही सबकुछ मानती है। लेकिन मुझे तुझ में चतुराई बिलकुल नहीं दिखाई देती है। तू भले ही अपने को चतुर मान ले, यह समझ ले कि 'मैं अनेक बातों में निपूर्ण हूँ, सभी बातों की जानकार हूँ, बुद्धिशाली हूँ, लेकिन सच बात तो वह है कि मुझे तुझ में और पशु में कोई अंतर नही दिखाई देता है। मुझे तो तेरा जीवन पशु के जीवन से भी बदतर लगता है, तुच्छ प्रतीत होता है।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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