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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र वीरमती की ये बातें सुन कर विचारमरन हुई गुणावली बोली, “माताजी, क्या मुझसे कोई गलत काम हुआ है ? क्या मैंने ऐसा कोई अकार्य किया है कि आप मुझे इस तरह मूर्ख समझ कर बोल रही हैं ?" अब हाथ जोड कर विनम्रता से गुणावली ने कहा, “माताजी, अनजाने में अगर मुझ से कोई अपराध हुआ हो तो आप मुझे क्षमा कीजिए / मुझे तो आपकी बातें समझ में ही नहीं आ रही है कि आज आप ऐसा क्यों कह रही है ? बालक तो माता के सामने हरदम अज्ञान ही होता है / आप इस द्रष्टि से मुझे अज्ञान, मूर्ख, भोली मानती हैं, तो ठीक है, मुझे कोई शिकायत नहीं है / लेकिन माताजी, मेरा जीवन बिलकुल घृणापात्र या व्यर्थ नहीं है। मुझे तो अपना जीवन पूरी तरह आनंदमय लगता है। अपने जीवन को साफ और पवित्र रखने के लिए आवश्यक चतुराई मुझ में अवश्य है / अन्य कोई पुरुष मुझे दिखाई नहीं देता हैं। ऐश्वर्य और सुखसंपत्ति की दृष्टि से -- देखिए तो मेरे लिए कोई न्यूनता नहीं हैं / ऐसी मेरी सभी सुखों से परिपूर्ण स्थिति होने पर भी आप मुझे पशु से भी हीन क्यों समझती है, यह मेरी समझ में बीलकुल नहीं आता है !" गुणावली की बातें सुन कर बडी गंभीरता से वीरमती ने उससे कहा, “प्रिय बहू तेरे मन में बड़ा गर्व है कि मेरे पति के समान अन्य पुरुष इस संसार में नहीं है।" तूने अपने पति से बढ़ कर होनेवाला कोई अन्य पुरुष अभी देखा ही नहीं, इसलिए तू ऐसा कह रही है। तेरी स्थिति तो बिलकुल कुएँ में पडे हुए मेंढ़क की तरह हैं / उस बेचारे को समुद्र की विशालता का अनुभव कभी मिलता ही नहीं है, और वह मान बैठता है कि यह कुआँ ही समुद्र है . नपुंसक होनेवाले पुरुष को रतिसुख की बात क्या समझ में आएगी ? जिसने कभी अंगूर चखा ही नहीं, उसे अंगूर के स्वाद की कल्पना कहाँ से होगी ? जिसने सम्यक् ज्ञान की सहायता से आत्मांनद को नहीं जाना, उसे तो भौतिक (सांसारिक) सुख ही उत्कृष्ट लगते हैं। जिसने कभी परमानंद का अनुभव नहीं किया, उसे तो विषयसुख ही रमणीय लगता है। जिसने जीवन में कभी घी नहीं देखा, उसे तो तिल का तेल ही मीठा जंचता है। नगरों की शोभा का ज्ञान जंगल में रहनेवाले जंगली मनुष्य को कहाँ से होगा ? जिसने कभी महल देखा ही नहीं, उसे घासफूल की बनी झोंपडी ही अच्छी लगती है / आँखों पर निरंतर ढक्कन होनेवाले तेली के कोल्हू मे जुते बैल को विश्व के विविध वृत्तांतों का पता कैसे चल सकता है ? बहू तेरी स्थिति बिलकुल ऐसी ही है। तूने अभी तक अपने अंत:पुर और आभानगरी के सिवाय देखा ही क्या है। तेरी अवस्था बिलकुल कूपमंडक P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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