________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र - अचानक दूर से अपनी सास वीरमती को अपनी ओर आते देख कर गुणावली ने अपनी दासियों को संकेत से सावधान कर दिया। रानी गुणावली को अंतरंग सहेली ने उसे सुझाया, “हे स्वामिनी, आप तुरन्त खड़ी होकर सामने से जा रही कपनी सास का स्वागत कीजिए। किसी की पुत्रवधू बनना और उसे निभाना आसान नहीं होता है। जैसे आप हमारे लिए सिरंछत्र की तरह हैं, वैसे ही आपकी यह सास आपके लिए सिरछत्र है। बहुत क्या कहूँ ?आपके पतिदेव भी आपकी सास की हर आज्ञा का पालन करते हैं।" __अपनी अंतरंग सखी की ये बातें ध्यान से सुन कर गुणावली अपने आसन पर से उठ खड़ी हुई / वह सास का स्वागत करने के लिए आगे बढ़ी और उसने अपनी सास को सम्मान से अपने महल में लाकर बैठने के लिए उच्चासन दिया। वीरमती के आसन पर स्थानापन्न होने के बाद गुणावली ने उसके पाँव पकड कर कहा, "आज मेरा बड़ा सौभाग्य है कि मेरे महल में आपका शुभागमन हुआ / आपने यहाँ पधार कर मुझे भी बड़ा सम्मानित किया है। अब आप तुरन्त मुझे बताइए कि मैं आपकी क्या सेवा करूँ ? मैं आपकी सेवा कर स्वयं को कृतार्थ समझ लूंगी।" पुत्रवधू गुणावली के प्रेम और विनय से भरे हुए वचन सुनकर वीरमती मन-ही-मन बहुत खुश हुई / वह गुणावली के सिर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद देते हुए बोली, "आकाशमंडल में जब तक ग्रह, नक्षत्र, तारे, सूरज और चंद्रमा विद्यमान हैं, तब तक तेरा सौभाग्य निरंतर बना रहे।" फिर वह गुणावली के पास नीचे बैठी और उसने गुणावली से प्रेम से कहा, “बहू, मैं किसी विशेष काम के लिए यहाँ नहीं आई हूँ। बहुत लम्बे समय से तुझे नहीं देखा था, इसलिए सिर्फ तुझसे मिलने और तेरा क्षेमकुशल जानने के उद्देश्य से मैं यहाँ आई हूँ। बहु सचमुच तू अपने नाम को सार्थक करती है, अपने नाम के अनुसार तुझ में गुण भी विद्यमान् हैं / तू सचमुच गुणों की अवलि है। इसके साथ साथ तूं कुलीन और विनयवती भी है। जब-जब तेरे मुख से मधुर वचन निकलते हैं, तब-तब ऐसा लगता है मानो अमृत का झरना बह रहा हो। जैसे चंद्रमा से अमृत् निकलने में, कमलपुष्प में से सुगंध फैलने में, गन्ने में से मधुर रस निकलने में और चंदन में से शीतलता प्रकट होने में कोई आश्चर्य नहीं होता, वैसे ही तेरे मुखरूपी कमल में से मधुरवाणी रूपी अमृत निकलने में कोई आश्चर्य नहीं होता / बहू, तू स्वभावत: मधुरभाषी हे, विनयवती है और सेवाभावी भी है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust