________________ 28 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र है। संसार दु:ख से ही भरा हुआ है, इसलिए संसार में मनुष्य के जीवन में दुःख का आना सर्वथा स्वाभाविक बात हैं / संसार में रह कर दुःख से डरना मूर्खता है। जब तक संसार है, तब तक दुःख तो आता ही रहेगा / मनुष्य जैसे-जैसे दुःख से दूर भागने की कोशिश करता है, वैसे-वैसे दुःख उसका पीछा करके उसे खोजता हुआ आता ही रहता है। दुःख से डर कर दूर भागने में बुद्धिमानी नहीं है। सच्ची बुद्धिमानी तो आए हुए दुःख का हार्दिक स्वागत कर उसे समताभाव से भोगने में है। सच्चे धर्मनिष्ठ मनुष्य की निशानी यही है कि वह दु:ख के आने पर उसे 'जाजा' न कह कर प्रेम से 'आ-आ' कहता है और उसका स्वागत करता है / दु:ख का स्वागत करना ही दु:खमुक्ति का सच्चा और अच्छा उपाय है, तो सुख के आने पर उसे 'जा-जा' कहना ही सुखप्राप्ति का अचूक उपाय है। जैसे प्रशांत महासागर में तेज गति से बहनेवाली वायु के कारण संक्षोभ-तूफान आता है, वैसे ही संसारसागर में भी अशुभ कर्मरूपी तेज हवा से सुख की नौका उलट कर टूकड़ेटूकड़े हो जाती है। कर्म की विचित्र गति को रोकने की सामर्थ्य किसमें है ? प्रकृति के इस नियम के अनुसार अब चंद्रराजा की जीवननौका भी संकट में फँसने की तैयारी में है। महान् पुरुष के जोवन में आनेवाला सुख भी महान् होता है और दुःख भी वैसा ही महान् होता है। कहते ही हैं, बड़ों का सब बड़ा ही होता है'। si.. SEEEEE . . अब हम ज़रा यह भी देख लें कि राजा चंद्र की रानी गुणावली कैसे सुखवैभव के उपभोग में निमग्न है ! एक बार राजा चंद्र दोपहर के समय भोजनादि से निवृत्त होकर राजदरबार में राजकार्य में व्यस्त था। इसी समय रानी गुणावली भी भोजन करने के बाद अपनी सखियों के साथ अंत:पुर के महल के एक छज्जे में आकर बैठ गई थी। रानी के गुणावली के छज्जे में आकर बैठते ही वहाँ उपस्थित रानी की दासियों ने उसे पंखे से हवा करना प्रारंभ किया। एक दासी ने रानी को सुगंधित पान खाने को दिया तो दुसरी दासी सुवर्ण के गिलास में स्वादु-शीतल पानी पीने के लिए ले आई। तीसरी दासी रानी के लिए रंगबिरंगे सुगधित फूलों का हार गूंथने लगी। चौथी दासी रानी के मनोरंजन के लिए हँसी-विनोद भरी बातें कहने लगी। यह सारा दृश्य देख कर ऐसा लग रहा था मानो स्वर्गलोक को कोई देवांगना धूमने के लिए मृत्युलोक में आकर यहाँ बैठी हो-विश्राम कर रही हो / गुणावली रानी के सुख को देखने के लिए शायद सूरज भी क्षण मात्र के लिए स्तंभित होकर खड़ा रह जाता था। इस तरह गुणावली के महल में नित्य आनंद की लहरें लहराती रहती थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust