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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र व्यसनों को राजा ने अपने राज्य में से देशनिकाल कर दिया था। राजा की धर्मप्रियता और न्यायप्रियता के कारण प्रजा भी धर्मप्रिय और न्यायप्रिय हो गई थी। प्रजा राजा के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम का भाव मन में रखती थी। 'यथा राजा तथा प्रजा' वाली कहावत यहाँ यथार्थ उतरती हुई दिखाई देती थी। राजा के सुख में प्रजा सुखी होती थी और राजा के दु:ख में दु:खी होती थी। चंद्रराजा के राज्य में कभी चोरी का भय नहीं था। राजा के प्रबल पुण्य के कारण उसे कभी अकाल का सामना नही करना पड़ता था / प्रजाजनों के घर धन-धान्य से भरे रहते थे। प्रजा दानप्रिय और सदाचारी थी। चंद्रराजा के राज्य में कही भिखारी खोजने पर भी नही मिलता था। चंद्रराजा युवक था, लेकिन उसमें युवावस्था का उन्माद नही था / सत्ताधारी होने पर भी उसमें अभिमान नही था, घमंड नही था, उन्मत्तता नही थी / रूपसौंदर्य में कामदेव की तरह होने पर भी वह परस्त्री को भूल कर भी बुरी नज़र से नही देखता था। राजा चंद्रकुमार नित्य सज्जनों की संगति में रहता था, दार्शनिक ग्रंथों का पठन करता था, परमात्मा जिनेश्वरदेव की प्रतिदिन नियमित रूप से पूजा करता था, ऋषिमुनियों के प्रति भक्तिभाव प्रकट करता था, उनकी सेवा करता था; साधार्मिक भाईयों को बंधुवत् मान कर उनके आदर-सम्मान रखता था; मुक्ति के मंगलमय मार्ग पर अग्रसर हुए माता-पिता का नित्य स्मरण कर वह उन्हें विसंध्या भावपूर्वक प्रणाम करता था और मन में नित्य यह इच्छा रखता था कि मैं भी अपने माता-पिता के पुनीत पदचिन्हों पर कब चल पडूंगा, कब मुक्तिमार्ग का पथिक बन जाऊँगा। चंद्रराजा की राजसभा इंद्र की सौ धर्मसभा से किसी भी तरह कम नही थी। बुद्धिनिधान मंत्रीगण राजतंत्र का संचालन अत्यंत सुंदर रीति से करते थे। राजा को सभी प्रकार का सुख प्राप्त था। उसके राज्य में किसी चीज का अभाव नही था। इस तरह चंद्रराजा की जीवन नौका संसार सागर में सरलता और सहजता से चली जा रही थी। लेकिन इस दुःखमय और कर्ममय संसार में किसके दिन एक समान व्यतीत होते हैं ? इस संसार में उन्नति-अवनति, सुख-दुःख, संपत्ति-विपत्ति का चक्र अनादिकाल से नित्य घूमता ही जा रहा हैं / भाग्यचक्र कभी एक गति से नही घूमता है। 'समरूपेण नो याति दिनं सर्व हि निश्चितम्।' यह सनातन सत्य है। संसार में रहते हुए नित्य सुख की आशा विवेकी मनुष्य को नही रखनी चाहिए / दु:खमय संसार में रहते हुए कभी दु:ख का स्पर्श भी नही होगा यह असंभव P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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