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________________ 26 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र तुम्हारा ही काम करूँगा। तुम मेरे बारे में बिलकुल नि:शक और नि:संकोच हो जाओ। मुझे तो सिर्फ तुम्हारी कृपादृष्टि की अपेक्षा है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।" __राजा चंद्रकुमार के मुँह से ऐसी विनययुक्त बातें सुन कर वीरमती बहुत खुश हो गई। नम्रता विनय का कारण है और गुणों का प्रकर्ष विनय से ही प्राप्त होता है / विनय का गुण महावशीकरण मंत्र है। धर्म की जड विनयगुण में ही निहित है / विनम्र मनुष्य सबको भाता है इसलिए चंद्रकुमार की विनम्रता से प्रसन्न होकर वीरमती बोली, ___ "हे प्रिय पुत्र, तू समस्त सुखोपभोगों का खुशी से अनुभव कर ! मेरा सारा जीवन तेरे ही लिए है। तू चिरंजीवी हो, पुत्रवान् हो और तेरा कल्याण हो यही मेरी इच्छा है!" चंद्रकुमार को ये आशीर्वचन सुना कर वीरमती अपने महल की ओर चली गई। चंद्रकुमार भी अपने महल की ओर लौट आया और पूर्वपुण्य के संयोग से प्राप्त हुई प्रिय पत्नी गुणावली के साथ सांसारिक सुखोपभोगों में तल्लीन हो गया। कामकला कुशल गुणावली भी राजा चंद्रकुमार को अनिर्वचनीय सुख का आस्वाद कराती रही ! इस राज-दंपती के शरीर अलग-अलग थे, लेकिन (हृदय-मन) तो एक ही था। शील-स्वभाव में समानता होने पर ही पतिपत्नी के बीच अटूट प्रेमभाव बना रहता है। साथ-साथ उठना, बैठना, सोना, जागना और हर्ष के प्रसंग में हर्षित और शोक के प्रसंग में शोकाकुल होना-ये ही सच्चे प्रेमभाव के लक्षण हैं। कामदेव की तरह अदभुत रूपसौंदर्य से युक्त राजा चंद्रकुमार राजसिंहासन पर बैठा हुआ ऐसा शोभित होता था जैसे उदयाचल पर सूर्य, नक्षत्रगणों के बीच चंद्रमा और देवताओं के बीच इंद्र शोभायमान होता है। चंद्रकुमार की राजसभा में बृहस्पति के समान बुद्दिमान् पाँच सौ पंडित थे। उसकी राजसभा में बुद्धि के भंडार समान मंत्री थे। राजा के पास लाखों की संख्या में सेना थी और राजभंडार भरपूर धन से भरा हुआ था। प्रबल पुण्यवान् और महापराक्रमी चंद्रराजा के भय से शत्रुराजा न घर में शांति पाते थे, न नगर में, न वन में। लेकिन चंद्रराजा की शरण में आते ही उन्हें शांति का अनुभव होता था। चंद्रराजा राजसभा के पंडितों के साथ प्रतिदिन ज्ञानचर्चा, तत्त्वचर्चा करता था। वह विद्वानों का सम्मान करता था और प्रजा का पुत्र की तरह पालन करता था। सातों प्रकार के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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