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________________ 25 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र सास - बहु : बीरमती-गुणावली का गुप्त वार्तालाप: N O Ce राजा वीरसेन और रानी चंद्रावती की दीक्षा के बाद रानी वीरमती और सर्वतंत्र स्वतंत्र बन गई। अब राजपरिवार में वही सबसे बड़ी थी। उसके पास प्रमुख अप्सरा से प्राप्त एक नहीं, बल्कि चार-चार महा विद्याएँ थीं। इसलिए अब उसके अभिमान का कोई पार नहीं था। विद्या प्राप्त करना आसान होता है, लेकिन पाई हुई विद्या को पचाना बड़ा कठिन काम होता हैं। एक बार रानी वीरमती ने अपने पुत्र राजा चंद्रकुमार को एकान्त में बुला कर कहा, “हे प्रिय पुत्र, तू अभी बालक ही है / तेरे माता-पिता ने तुझको राज्य का बीझ सौंप कर दीक्षा ले ली है, लेकिन जब तक मैं जीवित हूँ तब तक तुझे चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मेरे पास अनेक दिव्य और अलौकिक शक्तियाँ है / इससे कोई शत्रु तेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकता। मेरे पास ऐसी अलौकिक शक्ति हैं कि उसके बल पर मैं तुझे इंद्र का इंद्रासन भी लाकर दे सकती हूँ। मुझ मैं सूरज के रथ के घोड़े वहां से लाकर तेरी अश्वशाला में बाँधने की शक्ति है। पूरे मेरु पर्वत को उठा कर लाने की सामर्थ्य मुझ में है। देवकन्या या पातालकन्या से भी तेरा विवाह कराने की ताकत मैं रखती हूँ। मेरे लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। तेरे लिए, तेरे सुख के लिए सबकुछ करने के लिए मैं समर्थ हूँ। लेकिन हे पुत्र, एक बात तू ध्यान में रख कि मैं प्रसन्न हुई तो कल्पवल्ली हूँ और अप्रसन्न हुई तो विषवल्ली भी हूँ। इसलिए तुझे कभी यौवन या राज्य से उन्मत्त बन कर मेरी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। अगर तू मेरी आज्ञा लिए बिना कोई काम करने की भूल करेगा या मेरे दोष देखने की कोशिश करेगा, तो उसका परिणाम बड़ा भयंकर होगा। ऐसी स्थिति आई तो मैं माता नहीं रहूँगी, शत्रु बन जाऊँगी और फिर तुझे कड़ी-से-कड़ी सजा दूंगी।" __राजा चंद्रकुमार ने अपनी सौतेली माता के ये धमकी भरे वचन सुन कर हाथ जोड़ कर माता से कहा, “मां तुम निश्चित रहो। तुम्हारी आज्ञा मेरे लिए हरदम शिरसाबंध है। तुम ही मेरी माता हो, तुम ही मेरी पिता हो, तुमही मेरी अन्नदाता हो, राजा भी तुम्ही हो और मेरे लिए त्रिकालज्ञानी ईश्वर भी तुम ही हो / मुझो तो बस, अन्न और वस्त्र मात्र से प्रयोजन है / यह राजवैभव तुम्हारा ही है। मैं तो बस, तुम्हारे चरणों का सेवक हुँ / इसलिए मेरे योग्य कोई भी काम हो, तो तुम नि:संकोच आज्ञा कर दो। सेंकड़ों अन्य काम अलग रख कर मैं सबसे पहले P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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