________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र / लेकिन तपे हुए तवे पर पानी की बूंदें पड़ने से उस पानी की जो स्थिति होती हैं वही दशा रानी के कहे हुए अनुरागवर्धक वचनों की हुई / सच्चे विरक्त मनुष्य को राग के रंग में रंगने में कौन = समर्थ हो सकता है ? कहते हैं - 'विरक्ति दोषदर्शनात् !' 'विषयों' में जोरदार और यथार्थ दोषदर्शन में से सच्ची विरक्ति उत्पन्न होती है। अब विषयों के प्रति सच्ची विरक्ति पाए हुए मनुष्य को विषयों के बारे में गुणदर्शन-सुखदर्शनसारदर्शन कैसे कराया जा सकता है ? . अंत में जब रानी चंद्रावती ने अपने पति राजा वीरसेन को संयम दीक्षा लेने के निश्चय पर अटल देखा तो उसने यह बात-राजा की विरक्ति की बात-अपनी सौत रानी वीरमती को बताई / रानी वीरमती ने भी राजा के महल में आकर उसे अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, लेकिन राजा अपने द्रढ़ संकल्प से बिलकुल विचलित नही हुआ / जैसे मेरु पर्वत कल्पान्त काल की पवन से भी चलायमान नहीं होता है, वैसे ही राजा वीरसेन अपने संयम-दीक्षा लेने के निर्णय पर अटल रहा। अब रानी चंद्रावती ने राजा का संयम-दीक्षा लेने का द्रढ़ निश्चय जान कर राजा से कहा, "हे प्राणनाथ, में आपके मार्ग में रोड़ा अटकानेवाली नहीं हूँ। लेकिन आप मुझे भी संयम-दीक्षा लेने के लिए आज्ञा दीजिए / मैं आपके साथ ही संयम-दीक्षा लेने की इच्छा रखती हूँ। मैं भी आपकी ही तरह अपनी बची हुई जिंदगी मोक्षमार्ग पर चलने में व्यतीत कर देना चाहती हूँ। शास्त्रों में कहा भी है - 'प्रमदा: पतिवमगाः।' ___ अर्थात्, पत्नियाँ पतियों के मार्ग का अनुसरण करनेवाली होती हैं / जहाँ चंद्रमा होता हैं, वहीं उसकी ज्योत्स्ना होती है ! राजा ने चंद्रावती की संयम-दीक्षा लेने के लिए अनुमति की प्रार्थना स्वीकार कर ली। राजा रानी दोनों अपने-अपने मन में पूर्ण वैराग्य धारण कर संयम-दीक्षा ग्रहण करने के लिए तत्पर हो गए। राजा ने अपने इकलौते पुत्र चंद्रकुमार को अपनी पटरानी वीरमती को सौपा, उसे राजसिंहासन पर विधिवत् बैठा दिया और उसे विविध प्रकार का उपदेश दिया। फिर एक शुभ मुहूर्त पर राजा वीरसेन ने अपनी रानी चंद्रावती के साथ संयम दीक्षा ग्रहण कर ली। राजर्षि वीरसेन और साध्वी चंद्रावती ने निरतिचार चारित्र का पालन किया और दोनों क्रमश: श्री मुनिसुव्रत भगवान की अपार करुणा से केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षसुख के अधिकारी बन गए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust