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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र वैभव तो तुझे भूतकाल में भी अनेक बार मिला है और तूने उसका उपभोग भी किया है। फिर भी जब तुझे तृप्ति नहीं मिली है, तो क्या इस एक जन्म के राजवैभव से तुझे तृप्ति मिलनेवाली है ? इसलिए मृगजल की तरह होनेवाले इन काल्पनिक, नकली, नाशवान् और पराधीन सुखों का त्याग कर और शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिए तीर्थकर देवों द्वारा बताए हुए संयम के मार्ग पर चलना जल्द प्रारंभ कर / फिर से ऐसा अवसर मिलना दुर्लभ है / मनुष्य का यह शरीर तो नदी के किनारे पर उगे हुए पेड़ों के समान अस्थिर है / यौवन नदी के प्रवाह की तरह अत्यंत चंचल है। विषय-सुख संध्या के रंगों की तरह क्षणभंगुर है / वैभव बिजली की तरह चंचल है। स्नेहीजन यात्रा में मिले हुए पाथिकों की तरह आयाराम गयाराम जैसे हैं। इस संसार में कहीं कोई विश्वास करने योग्य नहीं है। मनुष्य का जीवन वायु की तरह अस्थिर जन स्वार्थी होते हैं / जहाँ संयोग होता है, वहाँ वियोग अवश्य होता है।" ... राजा ने सोचा, क्यों न मैं सारी बाह्य उपाधियों को त्याग कर और जल्द से जल्द संयम लेकर कर्मसत्ता को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर दूँ। हे आत्मन्, सावधान हो जा। संयम लेने का उचित समय आ गया हैं। तीनों भुवनों में संयम का परिणाम ही अत्यंत दुर्लभ है / 'शुभष्य शीघ्रम्' कर अपना आत्महित साध लें।" फिर राजा वीरसेन ने अपनी रानी चंद्रावती को अपने मन का विचार बताया और कहा, “देखो, मैं तो अब राज्य का बोझ त्याग कर संयम का भार स्वीकार करने को तैयार हो गया हूँ - संयम लेने का द्रढ़ संकल्प कर लिया है। हजारों वर्षों से भाँति-भाँति के मनभावने भोगों का उपभोग करने पर भी बिलकुल तृप्ति नहीं मिली है। कहा भी है - 'नच कामोयभोगेन कामक्षयो नाम।' अर्थात्, कामभोगों का उपभोग करने पर भी विषयवासना नष्ट नहीं होती है।" राजा की कही हुई ये बातें सुन कर रानी एक क्षण के लिए उदास हो गई। उसने सोचा कि मैंने ही 'जराराक्षसी का चुन-सफेद बाल' राजा को बता कर राजा के दिल में विरक्ति का भाव जगाया और बहुत बड़ी भूल की। मैंने तो मजाक किया था। मुझे क्या पता था कि उसका ऐसा गंभीर परिणाम निकल आएगा ? अब फिर से विकारजनक वचन बोल कर राजा के चिंत में राग उत्पन्न कर दूं। अब रानी राजा के सामने अनेक प्रकार से प्रेम के भाव व्यक्त करने लगी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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