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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र में उन्होंने तीनों कालों के सभी जड़चेतन पदार्थों को एकसाथ प्रत्यक्ष देखा / सभी सांसारिक जीवों की सुख-दु:ख, जन्म-मृत्यु, गति-आगति को उन्होंने एकसाथ, एक समय में ही प्रत्यक्ष जान लिया / चंद्र राजर्षि को केवलज्ञान की प्राप्ति होने से उनकी अनादिकाल की सारी भ्रांति भाग गई। चंद्र राजर्षि के निकट रहनेवाले सम्यगद्दष्टि देवों ने चंद्र राजर्षि के पास आकर उनकी केवलज्ञानप्राप्ति का महोत्सव मनाया। देवनिर्मित सुवर्णकमल पर आरुढ होकर सभा के सामने चंद्रराजर्षि ने अद्भूत धर्मदेशना दी। उन्होंने अपनी धर्मदेशना में सबको उद्देश्य कर कहा - "इस जगत् के जीव अनादिकाल से कर्मों के योग से चार गतियों और चौरासी लाख योनियों में जन्ममरण का चवकर काटते जा रहे हैं। वे तरह-तरह की यातनाएँ भोगते हैं। इस अनंत दु:खमय संसार का विनाश करने और अनंतसुखमय मोक्ष को प्राप्त करने के लिए जीवों को जिनेश्वरदेव कथित धर्म के अनुसार चलने के लिए प्रयत्न करना चाहिए / यह धर्म दो प्रकार का है - एक साधुधर्म है और दुसरा श्रावकधर्म है / जीवों को चाहिए कि शक्ति हो तो पहले समस्त संसार के सुखों संबंधों और पापों का प्रतिज्ञापूर्वक त्याग करके साधुधर्म स्वीकार कर लेना चाहिए। जिन जीवों में साधुधर्म का पालन करने की शक्ति न हो उन्हें समकित सहित श्रावक के बारह व्रतों को स्वीकार कर उसका निरतिचार रीति से पालन करना चाहिए। यह धर्मपालन सिर्फ मनुष्यजन्म में ही संभव है। इसलिए विषय, कषाय आदि प्रमादों का त्याग कर शुद्ध आशय से धर्म की विधिपूर्वक आराधन करनी चाहिए / मनुष्यजन्म आर्यक्षेत्र, आर्यकुल, पचेंद्रियों की प्राप्ति, स्वस्थ, शरीर निर्मल बुद्धि, दीर्घायु, सद्गुरु की संगति जिनवाणी का श्रवण, उसके प्रति श्रद्धा का भाव और संयमपालन में वीरता-पराक्रम दिखाना-ये बातें उत्तरोत्तर बहुत दुर्लभ है / इस ससार में कहीं भी सुख नहीं है / सुख सिर्फ मोक्ष में ही है। इसलिए मोक्ष पाने की कामना करनेवाले को जिनधर्म का पालन करने में तनिक भी प्रमाद नहीं करना चाहिए।" केवलज्ञानी चंद्रराजर्षि का यह धर्मोपदेश सुन कर वहाँ उपस्थित अनेक भव्यात्माओं ने प्रतिबोध पाकर यथाशक्ति व्रतनियम को स्वीकार कर लिए। वहाँ से विहार करते-करते एक बार चंद्र राजर्षि सिद्धाचलजी तीर्थक्षेत्र पर पधारे। पहले इस राजर्षि को यहीं पर मुर्गे में से फिर मनुष्यत्व की प्राप्ति हुई थी। अब वहाँ उन्हें सिद्धत्व की प्राप्ति होनेवाली थी। इसीलिए वे यहाँ पधारे है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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