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________________ 270 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र जिसने दीक्षा (संयम) ले ली, वह संयम में तल्लीन हो जाए, तो ही शिवसुंदरी से संगम हो जाता है, उसे अपना सकता हैं ! चंद्रराजर्षि और अन्य सब साधु-साध्वी सिंह की तरह वीरता से दीक्षा ग्रहण कर गए थे और सिंह की तरह वीरता से उसके पालन में तल्लीन थे। अपने आचरण को निर्मल रखने में वे सब प्रयत्नशील रहते थे। संयम का निरतिचार पालन करते हुए वे सब के सब परमात्मा मुनिसुव्रत भगवान की हर आज्ञा का पालन करने में तत्पर रहते थे। अंत में जिनाज्ञापालन में ही तो धर्म है न ? श्रुतसागर का अत्यंत गहराई से अवगाहन करने से चंद्र राजर्षि को अध्यात्मरत्न प्राप्त हो गया। इसलिए अब वे स्वप्रशंसा, परिनिंदा, वैशुन्य, ईर्ष्या, परदोषदर्शन आदि सभी दोषों का पूरी तरह से त्याग कर अप्रमत गुणस्थानक में चले गए और आत्मस्वरुप में तल्लीन होने लगे। अब चंद्रराजर्षि षट्काय जीवों की सावधानी से रक्षा करने लगे, विश्व के सभी जीवों को अपनी आत्मा के समान मानने लगे। आत्मस्वरूप का निरंतर चिंतन करते रहने से उन्हें जड़चेतन का भेद मालूम हो गया। अब वे यतिधर्मपालन में ही अपनी आत्मा का कल्याण मानने लगे / अष्टप्रवचन माता की गोद में प्रतिदिन बैठ कर खेलते-खेलते चंद्र राजर्षि ने क्षमारूपी खड़ग से मोहराजा पर विजय प्राप्त कर ली। अब चंद्रराजर्षि नित्य संवेगरस के सागर में सफर करने लगे। उन्होंने अपनी काया की माया पर से अपना ध्यान हटा लिया। घोर और उग्रतपसाधना करते-करते उन्होंने कर्म की सेना का, कूड़ाकर्कट निकाल डाला। उन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली। अब वे लगभग निरंतर धर्मध्यान में ही मग्न रहते थे। तरह-तरह के परिषहों को और उपसर्गो को वे पीडाकारी नहीं, बल्कि परोपकारी मानने लगे और उन्हें समताभाव से शांति से सहते रहे। परिषहों और उपसर्गों को उन्होंने आत्मशुद्धि का एकमात्र साधन मान लिया / उपसर्गों और परिषहों को समताभाव से सहन करने से आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट हो जाता है। उपसर्गों और परिषहों को शांतिपुर्वक सहर्ष सहन करना ही कर्ममुक्ति का मुख्य मार्ग हैं। चंद्र राजर्षि अब प्रतिदिन अपनी आत्मा का शांतरस से अभिषेक करते थे। अपनी आत्मा के प्रति अत्यंत रूचि होने से अब उनको आत्मानुभवज्ञान प्राप्त हो गया। अब उन्होंने क्षपकश्रेणी के ऊपर चढ़ना आरंभ किया। उत्कृष्ट धर्मध्यान करते करते उन्हें शुक्लध्यान प्राप्त हो गया। चंद्र राजर्षि ने अब क्षपकश्रेणी रूप गजराज पर सवार होकर शुक्लध्यान को तलवार से मोहराजा का मस्तक उड़ा दिया। फिर उन्होंने मोहराजा की सारी सेना को भगा दिया और ज्ञानावरणीयादि घाती कर्मों को समूल नष्ट कर केवलज्ञान पा लिया। केवलज्ञान के पूर्ण प्रकाशा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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