SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 267 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ___रानियों से अनुमति मिलते ही हर्षित हुए राजाने तुरन्त गुणावली के सुपुत्र गुणशेखर को राजसिंहासन पर बिठा दिया और उसे राजा बना दिया / मणिशेखर आदि अपने अन्य पुत्रों को भी राजा ने अपने विस्तृत साम्राज्य में से विशिष्ट प्रदेश देकर खुश कर दिया। चंद्र राजा ने राज्य आगे भी ठीक ढंग से चलता रहे, इस दृष्टि से सारा प्रबंध कर दिया। अब अपने राज्य की, पुत्रों की और पत्नियों की जिम्मेदारी से मुक्त हुए राजा चंद्र ने दीक्षा लेने के लिए तैयारी प्रारंभ कर दी। राजा की यह तैयारी देखकर प्रभावित हुई राजा की गुणावली, प्रेमला आदि सात सौ रानियाँ, सुमति मंत्री, नटराज शिवकुमार, उसकी कन्या शिवमाला आदि ने भी राजा के साथ ही दीक्षा लेने की प्रबल इच्छा प्रकट की / इसी को कहते हैं 'सच्चा प्रेम' ! आज के कलियुग में भोग में साथ देनेवाले अनेक मिलेंगे लेकिन त्याग में साथ देनेवाले बिरले ही मिलते हैं। अपने साथ इन सबकी दीक्षा लेने की प्रबल अभिलाषा देखकर राजा की खुशी का ठिकाना न रहा / भवसागर पार करते समय साथी मिले तो किसको आनंद नहीं होगा ? सारी तैयारी पूरी हो गई। एक शुभ मुहूर्त पर चंद्र राजा के पुत्ररत्नों-गुणशेखर और मणिशेखर ने धूमधाम से दीक्षामहोत्सव का आयोजन किया। अपने सारे परिवार के साथ चंद्रराजा 'वर्षीदान' देता हुआ उस स्थान पर आ पहुँचा, जहाँ भगवान मुनिसुव्रत स्वामीजी का निवास था। इस समय भगवान देशना (धर्मोपदेश दे रहे थे। राजा ने श्रद्धाभाव से भगवान की तीन परिक्रमाएँ की, विनम्रता से वंदना की और वह सपरिवार भगवान की देशना सुनने के लिए बैठ गया। मुनिसुव्रत स्वामी भगवान की वैराग्यमय देशना फिर से सुनने पर राजा का वैराग्य पहले से भी अधिक बढ़ गया। यह देख कर वहाँ की सभा में बैठे हुए इन्द्रों और देवों ने चंद्र राजा के त्याग और वैराग्यभाव की भूरी-भूरी प्रशंसा की। अब गुणशेखर राजा ने भगवान के सामने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, “हे अनंत करुणासागर प्रभु, ये मेरे पूज्य पिताजी और मेरी सभी पूज्य माताएँ शिवसुख प्राप्त करने के लिए संसार त्याग कर दीक्षा लेना चाहते हैं / इसलिए आप कृपा कर उन्हें दीक्षा का दान दीजिए !" भगवान मुनिसुव्रत स्वामी ने राजा गुणशेखर की विनम्रता भरी प्रार्थना सुन कर चंद्र राजा और उसके साथ आए हुए दीक्षार्थियों को दीक्षा देना किया। चंद्रराजा को दीक्षा लेने में दृढ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy