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________________ 266 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र काया की माया छोड दी जाए तो मोक्ष मिला ही समझिए। स्नान, विलेपन आदि इस काया-शरीर-का चाहे जितना संस्कार कीजिए, लेकिन यह मैली की मैली ही रहती है। लेकिन इस मलिन काया से आत्मा में भरी हुई अनादिकाल की कर्म . की गंदगी संयम के पानी और तप के साबुन से साफ की जा सकती है। . इस मानवदेहरूपी नौका की सहायता से ही मनुष्य भवसागर पार कर सकता है। इसलिए हे प्रिय रानियो, अब मेरा मन सांसारिक प्राणी के रूप में रहने में बिलकुल नहीं लगता है। इस संसार में स्वजनों का संगम तो पंछियों के मेले की तरह अस्थिर है। जैसे पागल स्त्री के माथे पर होनेवाला घड़ा अस्थिर रहता है, वैसे ही इस संसार के सभी पदार्थ अस्थिर ही हैं। दूसरी बात, इस संसार में मनुष्य को कभी-कभी पूर्वपुण्य के प्रभाव से मणि-माणेक, धनधान्य राज्यसंपदा, स्त्री-पुत्र-परिवार आदि प्राप्त हो जाते हैं, लेकिन यह सब इसी संसार में ही रह जाते हैं / इस जीव को मरते समय असहाय अवस्था में खाली हाथ ही अकेले परलोक सिधारना पड़ता है। इनमें से एक भी वस्तु उसके साथ कभी नहीं जाती है। संसार की यह क्षणभंगुरता, असहायता और विषमता देखकर मेरा मन संसार के प्रति उदास हो गया है। इसलिए अब मैं यह संसार का त्याग कर संयम-चारित्र-स्वीकार लेना चाहता हूँ। हे रानियो, संसार छोड़ कर चारित्र ग्रहण करने के लिए मुझे तुम्हारी अनुमति की अत्यंत आवश्यकता है। मुझे भगवान के वचनों में पूरा विश्वास उत्पन्न हो गया है। इसलिए मेरे मन में उन्हीं की शरण में जाने को प्रबल इच्छा निर्माण हो गई है। इसलिए यदि तुम मुझे संसार छोड़ कर दीक्षा लेने के लिए खुशी से अनुमति दोगी तो बहुत अच्छा होगा। अगर तुमने इन्कार किया, तो भी मैं दीक्षा तो निश्चय ही लेनेवाला हूँ। ऐसा कौन मूर्ख क्षुधातुर होगा कि जिसके मुख के सामने मिष्ठानों से भरी थाली आने पर भी वह उसे ग्रहण किए बिना भूखा ही बना रहे ?" अपने पति की ऐसी अद्भूत वैराग्य भावनायुक्त बातें सुन कर गुणावली और प्रेमला दोनों ने राजा को इस संसार में रहने के लिए हर तरह से समझाने की कोशिश की। लेकिन जब उन्हें राजा के निश्चय से ऐसा प्रतीत हुआ कि उन्हें रोके रुका नहीं जा सकता, तब उन्होंने राजा को सहर्ष दीक्षा लेने के लिए अनुमति दे दी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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