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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 265 चंद्र राजा की विनभ्रतापूर्ण प्रार्थना सुन कर मुनिसुव्रत भगवान ने राजा से कहा, “हे राजन, हे देवानुप्रिय / यदि तुम्हारी संसारसागर पार उतरने की इच्छा हो, तो अपने परिवार की अनुमति लेकर यथाशीघ्र संयम-दीक्षा ग्रहण कर लो / संयम-दीक्षा लिए बिना प्राणी अनंत दु:खमय संसारसागर पार नहीं कर सकता है। मुमुक्षु भव्य जीवों को आत्मोद्धार के लिए ऐसा भगीरथ प्रयत्न प्रारंभ करने में विलम्ब नहीं करना चाहिए। “शुभे शीघ्रम्' मान कर उन्हें शिवसुख की प्राप्ति के लिए कमर कसनी चाहिए, दत्तचित्त होकर प्रयत्न में जुड जाना चाहिए।" अनंत करुणामय भगवान का यह धर्मोपदेश सुन कर चंद्रराजा ने भगवान का 'वचन तहत्ति' किया और वह भगवान को फिर से श्रद्धाभाव से वंदना करके अपने परिवार के साथ संयम-दीक्षा लेने की भावना मन में रखता हुआ और राज्य, पत्नी, पुत्र, परिवार आदि को भवभ्रमण का कारण मानता हुआ राजमहल मे लौट आया। ___ मुनिसुव्रत स्वामी भगवान् की वैराग्यमय देशना (धर्मोपदेश) सुनकर और अपने पूर्वभव की कहानी जानकर संसार से विरक्त बने हुए चंद्र राजा ने राजमहल में वापस आते ही अपनी पत्नियों-गुणावली तथा प्रेमला-को अपने पास बुला लिया और उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा, "हे प्रिय रानियो, मैंने भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के हाथों संयम-दीक्षा ग्रहण करने का निश्चय कर लिया है। ___ भगवान की अमृतमय वाणी का पान करने मेरी आत्मा बहुत तृप्त हो गई है। इसीलिए अब मेरा मन राज्यमुख और भोगसुख पर से उठ गया है। मेरे मन में इन सुखों की अब कोई अभिलाषा नहीं रही है। मुझे अब भौतिक पदार्थों में सुख का अंश भी दिखाई नहीं देता है। मेरा मन अब इस भयंकर संसार से ऊब गया है। मेरा जीवन तो अंजलि में लिए हुए पानी की तरह क्षण-क्षण घटता जा रहा है / जीवनरुपी सूर्य कब अस्त होगा इसका कोई पता नहीं है। लेकिन मुझे इतना अवश्य मालूम है कि - 'जानेन अवश्यं मर्तव्यम्।' ___ अर्थात् जन्म लेनेवाले के लिए मृत्यु निश्चित है - अवश्यंभावी है। इस यौवन की शोभा और शत्ति 'चार दिन की चाँदनी' की तरह क्षणभंगुर है। विभिन्न प्रकार के भोग फणिधर साँप के फन के समान भयंकर है। यह काया कुलटा स्त्री के समान है। इस काया का मनुष्य बिलकुल विश्वास नहीं कर सकता है / काँच के तरतन की तरह होनेवाली यह काया कब टूट-फूट जाएगी यह कहना कठिन है। वास्तव में मनुष्य को तो इस काया का उपयोग सिर्फ कर्मों का काँटा निकाल डालने के लिए ही करना चाहिए / बाकी मनुष्य को इस कुटिल काया से जरा मी ममताभाव नहीं रखना चाहिए / काया के प्रति ममता ही तो सारे संसार की जड़ है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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