________________ 264 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र हे राजन्, तुमने रूपवती के भव में कोसी के पंख तोड़ कर उसके साथ बैर बाँधा, इसलिए उस-कोसी ने-इस भव में वीरमती बन कर तुम्हें मनुष्य से मुर्गा बना कर उसका बदला लिया। पूर्वकृत कर्म का जब उदय होता है, तब उसे करनेवाले को उसको अवश्य भोगना ही पडता है। पूर्वकृत कर्म उसे करनेवाले कर्ता का पीछा करते हुए जाता है / वहाँ किसी का कोई उपाय नहीं चल सकता है। तिलकमंजरी ने अपने उस भव में साध्वीजी पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाया था, इसलिए इस भव में उस साध्वीजी ने मर कर कनकध्वज का जन्म ले लिया और प्रेमलालच्छी पर विषकन्या होने का आरोप लगा कर उसे अपमानित किया। पूर्वजन्म में रुपवती के सामने जैसे कोसी पक्षी के रक्षक पुरुष का कोई प्रभाव न पड़ा, इसी के परिणाम स्वरूप इस भव में (जन्म में) वीरमती के सामने गुणावली का कोई प्रभाव न पड़ा। इसीलिए गुणावली रोती ही रही और उधर उसकी आँखों के सामने वीरमती ने मंत्रशक्ति से उसके पति चंद्रराजा को मनुष्य से मुर्गा बना दिया। पूर्वजन्म में रुपवती की दासी ने कोसी पक्षी की सेवा थी, इसलिए इस जन्म में शिवमाला ने उस मुर्गे को लेकर प्रेमला को स्नेहपूर्वक सौंपा और उसकी पूरे प्रेम से सेवा की।" इस प्रकार मुनिसुव्रतस्वामी भगवान ने चंद्र राजा के पूछे हुए सभी प्रश्नों के उत्तर दिए / उन्हें सुन कर श्रोताओं ने अच्छा उपदेश पा लिया। चंद्रराजा ने जब अपने पूर्वजन्म की कहानी मनुसुव्रत भगवान से सुनी, तो वैराग्य के भाव से उसने कर्म और संसार के मायाजाल को छिन्नभिन्न कर डाला और परमोपकारी भगवान मुनियुव्रतस्वामी के चरणकमलों में भक्ति से प्रणाम किया। फिर चंद्र राजा ने भगवान से कहा, 'हे भगवन् / आप जैसे अनंत करूणासागर कर्णधार को पाकर यदि हम यह भवसागर पार नहीं पर सके, तो फिर हमारा उद्धार कौन करेगा ? आपने हमारे सामने संसार का यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत करके हमारे अंर्तचक्षु खोले हैं, हमारा मोहाँधकार आपने दूर किया हैं। आपने हम लोगों में धर्म के प्रति पुरुषार्थ जगाया हैं। इसलिए आप हमें अपना मानकर हमारा यथाशीघ्र संसारसागर से उद्धार कीजिए। हे प्रभु, अनादिकाल से भवभ्रमण कर-कर के हम बहुत थक गए हैं। इसलिए हमपर दया करके हमें भवसागर से पार उतार दीजिए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust