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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 263 रूपवती के भव में, जो साध्वीजी उपाश्रय में अपमानित होने के कारण फाँसी का फंदा डाल कर आत्माहत्या कर रही थी, उनको मरने से बचाने के लिए पड़ोस में रनहेवाली जो सुरसुंदरी नामक श्राविका दौड़ती हुई आई थी और जिसने साध्वीजी के गले में पड़ा फाँसी का फंदा तोड़ डाल कर उन्हें बचाया था, वह जैन श्राविका सुरसुंदरी अपना वह जीवन पूरा करके मर कर इस जन्म में तुम्हारी पटरानी गुणावली बन गई हैं। __ मिथ्यात्वी राजपुत्री तिलकमंजरी अपना वह भव पुरा करके मर कर इस भव में तुम्हारी रानी प्रेमलालच्छी बनी है। जिन साध्वीजी ने पिछले जन्म में आत्माहत्या करने का प्रयास किया था, वे वह भव पूरा करके मरी और अगले भव में कोढ़ी कनकध्वज राजकुमार के रूप में घरती पर आई। तिलकमंजरी के पास जो मधुरभाषी सारिका थी वह मर कर कनकध्वज राजकुमार की उपमाता कपिला बन गई। सारिका के जन्म में उसने तिलकमंजरी और रूपवती इन दो सौतों के बीच झगड़ा कराया था। इस जन्म में भी उस कपिला ने प्रेमलालच्छी पर विषकन्या होने का इल्जाम लगा कर बहुत बड़ा कलह निर्माण कर दिया। पिछले जन्म में तिलकमंजरी और रूपवती दोनों का पति होनेवाला शूरसेन मर कर इस जन्म में नटराज शिवकुमार बना / पूर्वजन्म में रूपवती की जिस दासी ने मरते हुए कोसी पक्षी को चौदह पूर्वो का सारभूत और महाप्रभावकारी नवकारमंत्र सुनाया था, वह उस पुण्य के प्रभाव से मर कर इस जन्म में नटराजपुत्री शिवमाला बनी। सारिका की देखभाल करनेवाला रक्षक मर कर इस जन्म में हिंसक मंत्री बना हैं। इस प्रकार सब के पूर्वभव और इस भव की बातें विस्तार से समझा कर मुनिसुव्रत स्वामी भगवान आगे बोले, "हे राजन, इस संसार में जो प्राणी जैसा कर्म करता है, वह वैसा फल पाता है। कर्म की गति अत्यंत विचित्र है। उसकी गति को कोई रोक नहीं सकता है। इसलिए हरएक मनुष्य को कर्मबंध कर लेने से पहले बहुत गंभीरता से विचार करना चाहिए। हे राजन् ! तुमने अपने पूर्वजन्म के चरित्र पर से कर्म की विचित्रता कैसी होती है, यहबात अच्छी तरह से जान ली है। तुमने रूपवती के जन्म में (भव में) क्रोध के आवेश में कोसी पक्षी के पंख तोड़ डाले थे। इसीलिए वह कोसी पक्षी अपना वह भव समाप्त होने पर मर कर अगले भव में वीरमती बन कर पैदा हुआ। उसने इस जन्म में तुझे मुर्गा बना कर अनेक प्रकार का दु:ख दिया है। हम जैसा दान देते हैं, उसका वैसा प्रतिदान हमें मिलता हैं। दूसरे को हम दुःख दे, तो हमें बदले में दु:ख मिलेगा और यदि हम दूसरों को सुख दे, तो उसके बदले मे हमें भी सुख ही मिलेगा। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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