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________________ 262 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र “सखी रूपवती, मैंने अच्छी तरह देख लिया कि तेरा जैन धर्म कैसा है। जैन धर्मी मुँह से दया-दया की बड़ी लम्बी-चौड़ी बातें करते हैं, लेकिन उनके जैसे निर्दयतापूर्ण काम अन्य धर्मी भी नहीं करते हैं / हे धर्म की पुतली ! उस बेचारे अबोध कोसी पक्षी को मार डालते समय तेरे अंत:करण में थोडी-सी भी दया उत्पन्न नहीं हुई ? ऐसा क्रूर कर्म करते समय तेरे हाथ काँप भी नहीं उठे ? देख, मैं तो भूल कर भी तेरे जैसा हिंसक कर्म कभी नहीं करती हूँ।" __ तिलकमंजरी के तीखे, व्यग्यपूर्ण लेकिन मार्मिक वचन सुन कर रुपवती का मन बहुत दुःखी हुआ। इस घटना से इन दो सौतों के बीच धार्मिक मतभेद बहुत अधिक बढ़ गया। उन दोनों के पति राजकुमार शूरसेन ने दोनों को समझाने का अपनी ओर से बहुत प्रयत्न किया लेकिन इसका परिणाम अग्नि में घी डालने के समान विपरीत निकला। दोनों के बीच होनेवाली द्वेषाग्नि शांत न हुइ। बल्कि अधिक भड़क उठी। कोसी पक्षी को मार डालने से रूपवती के मन में बहुत पश्चात्ताप हुआ। लेकिन क्रोध के आवेश में किए हुए क्रूर कार्य से उसने अशुभ कर्म बाँध लिया / यह ऐसा कर्म था जिसका फल भोगे बिना मुक्ति संभव नहीं थी। इसीलिए तो ज्ञानी पुरुष संसारी जीवों को चेतावनी देते हुए कहते हैं - 'बंध समय चित्त चेतीए, उदये शो संताप ?' अर्थात् 'कर्म का बंध होते समय ही चित्त में सावधान हो जाइए। कर्म का उदय होने पर संताप करने से क्या लाभ ? बुद्धिमान् जीव को अपने जीवन में हर कार्य बहुत सोच विचार कर करना चाहिए। ऐसा करने से उसे बाद में पश्चात्ताप नहीं करना पड़ेगा, उसका कटु फल भोगना न पड़ेगा। ____एक बार क्रोध के आवेश में अनुचित कार्य रूपवती से हो तो गया, लेकिन उसके मन में जैनधर्म के प्रति बहुत श्रद्धाभाव था। रूपवती जैन धर्म के रहस्य की भी जानकार थी। इसलिए उसने गीतार्थ गुरु महाराज के पास जा कर अपनी ओर से हुए पाप की आलोचना की-उसके लिए प्रायश्चित कर लिया। अपने पाप के लिए अपनी ही निंदा और उसके लिए पश्चात्ताप करके उस पापकर्म को बहुत क्षीण कर दिया। लेकिन उसने स्त्रीवेद का क्षय करके पुरुषवेद बाँध लिया। फिर रूपवती के रूप में होनेवाला जीवन पूर्ण होने से रूपवती की मृत्यु हुई। फिर रूपवती के जीव ने मर कर तत्कालीन आभानरेश वीरसेन की रानी चंद्रावती की कुक्षि में पुत्र का जन्म पाया / इस पुत्र का नामकरण 'चंद्रकुमार' किया गया।" भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी ने आगे कहा, “हे राजन्, वह चंद्रकुमार तुम स्वयं ही हो। रूपवती के भव में कोसी पक्षी की देखभाल करनेवाला जो आदमी था वह उसके दयाधर्म के प्रभाव के कारण, अपना वह जीवन पूरा करके मर कर तुम्हारा सुमति नामक मंत्री हुआ हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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