________________ RAANCHAL श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 261 तिलकमंजरी के अपनी सारिका के बारे में ये धमंडपूर्ण वचन सुनकर रुपवती को अपने कोसी पक्षी के बारे में बहुत गुस्सा आया। उसने उसी समय क्रोध में कोसी के दोनों पंख काट डाले। सच है, क्रोधावेश में मनुष्य को कर्तव्याकर्तव्य का विवेक बिलकुल नहीं रहता है। कोसी पक्षी की देखभाल करने के लिए नियुक्त सेवक ने रुपवती को बारबार रोकते हुए अनेक बार विनम्रता से कहा, "स्वामिनी, आप इस बेचारे कोसी के पंख मत काटिए।" लेकिन ईर्ष्या और क्रोध के आवेश में होनेवाली रुपवती ने अपने सेवक की किसी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसकी हर बात उसने अनसुनी-सी कर दी। कोसी के पंख काट डालने के बाद वह बेचारा सोलह प्रहरों तक घायल अवस्था में तिलमिलाता रहा और आखिर तड़प तड़प कर मर गया। मर कर इसी कोसी पक्षी का जीव पूर्वभव के किसी पुण्य के उदय से, वैताढ्य पर्वत पर स्थित गगनवल्लभ नगर के पवनवेग नामक राजा के वेगवती नामकी रानी की कुक्षि में पुत्री के रूप में उत्पन्न हुआ। राजा-रानी ने इस कन्या का नाम 'वीरमती' रखा। यह वीरमती जब यौवनावस्था में आई, तब उसके माता-पिता ने उसका विवाह तत्कालीन आभानरेश वीरसेन के साथ कर दिया / वीरमती ने अप्सराओं की ओर से अनेक प्रकार की विद्याएँ और मंत्रतंत्र प्राप्त कर लिए थे। समय पाकर जब वीरमती के पति राजा वीरसेन ने राज्य त्याग कर संन्यासदीक्षा ले ली, तब वीरमती ने अपने मंत्रतंत्र और अनेक विद्याओं के बल पर राज्य प्राप्त कर लिया और अनेक वर्षों तक उसने राज्योपभोग किया। कोसी पक्षी की मृत्यु के समय रुपवती की दासी ने पक्षी को नवकारमंत्र सुनाया था और मृत्यु के बाद उसका अग्निसंस्कार भी किया था। . क्रोधावेश में गलत काम कर जाने के कारण रुपवती को बहुत पश्चात्ताप होने लगा। किसी भी तरह की क्यों न हो, लेकिन आखिर वह थी तो जैन धर्मी ही न ? किए हुए पाप के लिए जो पश्चात्ताप करता है, उसका उद्धार होते देर नहीं लगती है। . तिलकमंजरी तो पहले से ही महामिथ्यात्वी और महाकपटी थी। इसलिए कोसी पक्षी की। मृत्यु के बाद रुपवती पर व्यंग्य करने में कोई कसर नहीं रखी। दुर्जन मनुष्य जले पर नमक छिड़कने में नहीं हिचकिचाता है। अब तो तिलकमंजरी को जैन धर्म की निंदा करने के लिए सुनहरा अवसर मिल गया। तिलकमंजरी रूपवती से कहने लगी, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust