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________________ 244 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र बहुत काल तक नहीं भटकता है। वह कुछ ही समय में मोक्षप्राप्ति कर जाता है। मोक्षप्राप्ति में ही सच्चा, स्वाधीन, संपूर्ण और शाश्वत सुख होता है। यहाँ जन्म-जरा-मृत्यु-रोग-शोकादि का सर्वथा और सर्वदा अभाव होता हैं। __ ऐसे शाश्वत सुख देनेवाले मोक्ष की साधना मनुष्यजन्म को छोड़कर अन्य किसी जन्म में नहीं हो सकती है। मनुष्य ही सभी पापों और आश्रवों का प्रतिज्ञा के साथ त्याग कर सकता है, अन्य जीव नही कर सकता। मनुष्य ही संपूर्ण संवर और निर्जरा की आराधना कर सकता है। मनुष्य ही अष्ट कर्मों के बधनों को तोड़ कर मोक्षप्राप्ति कर सकता है। - मनुष्य का जन्म वास्तव में मोक्षप्राप्ति कर लेने के लिए ही है। मनुष्यभव (जन्म) की महत्ता इस मोक्ष के कारण ही है। यदि मोक्ष न होता, अथवा मोक्ष के होते हुए भी मनुष्य जन्म पाने पर मोक्ष प्राप्त न हो सकता होता तो अनंतज्ञानी पुरुष मनुष्य जन्म को दस द्दष्टान्तों से दुर्लभ न कहते। ___ इसीलिए यह मनुष्यजन्म और भवसागर पार कर जाने के लिए सुदेव-सुगुरू और सुधर्म की सामग्री मिलना अत्यंत दुर्लभ है / मानवजन्म और सुदेवादि की प्राप्ति होते हुए भी उसका सदुपयोग प्रमादी जीव नीहं कर सकता है। प्रमाद के परवश हुआ जीव अनंतपुण्य के उदय से प्राप्त हुए मनुष्यजन्म और धर्म की सामग्री को खो देता है। इसीलिए प्रमाद ही आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु है, प्रमाद ही नरक का मार्ग है ! आयुकर्म को छोड़ कर अन्य सातों कर्मों की जब अंत:कोटाकोटि सागरोपम की स्थिति शेष रहती है, उसमें भी पल्योपम की असंख्यवें भाग की स्थिति का हास होता है, तभी जीव को समकित की प्राप्ति हो जाती है। फिर बाकी बचे हुए कर्मों की स्थिति में से 2 से 3 पल्योपम की स्थिति का हास होता है तब जीव को देशविरति की प्राप्ति ही जाती है। उसमें से संख्याता सागरीपम की स्थिति घटने पर जीव को सर्वविरति प्राप्ति होती है। सर्वविरति रूप चारित्र्य पाकर जो जीव उसका अप्रमत्त भाव से निरतिचार पालन करता है, वही जीव ठेठ मोक्ष तक भी | पहुँच जाता है / मोक्ष तक पहुँचने के बाद जीव अनंत और अव्याबाध सुख प्राप्त कर लेता है। मोक्ष में जीव की स्थिति सादि अनंत होने के कारण वहाँ से जीव फिर कभी संसार में वापस / नहीं आता है। संसार का कारण कर्म का संयोग है। लेकिन मोक्षप्राप्त जीवों ने तो इस कर्म के संयोग का पूरी तरह विनाश किया हुआ होता है, इसलिए उन्हें फिर से संसार में क्यों आना पड़ेगा ? P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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