________________ 245 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कारण होने पर ही कार्य होता है। कारण के अभाव में कार्य का भी अभाव ही होता है। कारण की अनुपस्थिति में कार्य नहीं हो सकता है। - इसलिए हे भव्य जीवी ! ऐसे अनंत सुखदायी मोक्ष की प्राप्ति के लिए जीव को निरंतर कर्मक्षय करने का प्रयत्न करना चाहिए। कर्मक्षय करने के लिए जिनाज्ञा-आगम-के अनुसारसम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्यारित्र्य की आराधना अत्यंत श्रद्धा के भाव से करनी चाहिए। इसके लिए जीवको तत्त्वदर्शी बनना होगा। इस धर्म के प्रभाव से ही जीव मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है।" मुनिसुव्रतस्वामी भगवान की ऐसी तत्त्वदर्शी और वैराग्यभाव से पूर्ण धर्मदेशना सुन कर चंद्र राजा के अंत:करण में भी वैराग्य की भावना उत्पन्न हो गई / इसलिए राजा ने तुरंत उठकर भगवान मुनिसुव्रतस्वामी से यथाशक्ति व्रत नियम ग्रहण किए और उनका पालन करने का मन में निश्चय कर लिया। धर्मश्रवण का फल व्रतग्रहण होता है। इसलिए व्याख्यान सुनने के बाद श्रावक-श्राविकाओं को यथाशक्ति व्रत-नियम आदि ग्रहण कर लेने चाहिए। ___ अब चंद्र राजा ने अनंतज्ञानी भगवान से प्रश्न किया, "हे भगवन, मुझे अपने क्रिया कर्म के फलस्वरूप अपनी सौतेली माँ से मुर्गा बनना पड़ा ? किस कर्म के कारण में मुर्गे के रूप में नटों की मंडली के साथ देश-विदेश में वर्षों तक भटका ? किस कर्म के फलरूप मैं प्रेमला के हाथ में आया ? किस कर्म से मुझे सिद्धगिरि का संयोग और मनुष्यत्व की पुनप्राप्ति हुई ? किस कर्म के योग से हिंसकमंत्री ने मकरध्वज राजा के साथ छलकपट किया ? किस कर्म के कारण राजकुमार कनकध्वज जन्म से ही कोढ़ का शिकार बन गया ? किस कर्म से मेरा रानी गुणावली। के साथ पुनर्मिलन हुआ ? हे प्रभु, इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने की मेरे मन में बहुत उत्कंठा है / आप जैसे . अनंतज्ञानी परमात्मा को छोड़कर अन्य कौन मेरे इन सभी प्रश्नों का सही उत्तर दे सकता है ? इसलिए है भगवन्, मुझ पर कृपा कीजिए और मेरे मन में उत्पन्न हुए इन प्रश्नों के सही उत्तर देकर मुझे उपकृत कीजिए।" श्री चंद्रराजा, गुणावली प्रेमला आदि के पूर्व भव चंद्रराजा की विनययुक्त बातें सुनकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान ने चंद्रराजा के उसके पूर्वभव की जानकारी देना प्रारंभ किया। भगवान ने बताया, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust