________________ 238 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र इधर गुणावली और प्रेमला के बीच आपस में ऐसा गहरा स्नेहभाव बढ़ा कि एक को दूसरे के बिना चैन नहीं आता था / गुणावली के मन में यह बात बड़ा जबर्दस्त प्रभाव कर गई थी कि यदि मेरे स्वामी राजा चंद्र को इस प्रेमला का सयोग न मिलता, तो वे मुर्गे में से मनुष्य न बनते / इस प्रेमला के प्रभाव से ही मुझे मेरे पति सोलह वर्षों के बाद ही सही, लेकिन वापस मिले / इसी प्रेमला के कारण ही आभापुरी की जनता को अपना राजा मिला और मेरे पति को मुर्गे के रुप में से मनुष्यत्व मिला और साथ-साथ आभापुरी का यह विशाल राज्य भी मिला / सचमुच प्रेमला का हम सब पर ऐसा उपकार है, जिसका बदला चुकाना कठिन है। उस बेचारी ने भी विवाह के तुरन्त बाद पतिविरह की व्यथा सोलह वर्षों तक सही है / प्रेमला सचमुच महासती है, प्रेम का सागर है। ___ गुणावली और प्रेमला दोनों साथ-साथ उठती, बैठती, खाती-पोती, सोती-घूमने जाती, मंदिर में भगवान के दर्शनकरतीं। उनका सबकुछ लगभग साथ-साथ चलता था। इतना साथसाथ कि देखनेवाले आश्चर्य में पड़ते थे। . प्रेम अलगाव में विश्वास नहीं रखता है ! जहाँ प्रेम होता है, वहाँ एक्य, आत्मीयता, मेलजील, सहयोग, सहानुभूति आदि शुभ तत्त्व अवश्य होते ही है। राजा चंद्र भी अपनी दोनों रानियों से समभाव से बर्ताव करता था। अब समय के बीतते-बीतते कालक्रम से देवलोक में से कोई उत्तम देवता चकित होकर (गिर कर) गुणावली के गर्भ में आया / गुणावली ने उस रात शुभ स्वप्न देखा। नौ महीनों का गर्भकाल पूरा करके गुणावली ने एक शुभ घड़ी में पुत्ररत्न को जन्म दिया। दासी ने राजा के पास जाकर उसे पुत्रजन्म का शुभसंदेश दिया। राजा ने पुत्रजन्म की खुशी के संदेश लानेवाली दासी को बड़ा इनाम देकर खुश कर दिया। पुत्रजन्म की खुशाली में राजा ने बड़ा महोत्सव मनाया। पुत्र का अद्भुत सुंदर रूप देख कर राजा बहुत खुश हो गया। बारहवें दिन बड़ी धूमधाम से पुत्र का नामकरण उसके जन्माक्षर के अनुसार 'गुणशेखर' किया गया। समय बीतता गया और रानी प्रेमला ने भी एक सर्वागसुंदर पुत्र को जन्म दिया। अब तो राजा की खुशी का ठिकाना न रहा। इस पुत्रजन्म की खुशी भी महोत्सव से मनाई गई। बारहवें दिन इस पुत्र का बड़ी घूमधाम से नामसंस्कार किया गया और इस पुत्र का नाम रखा गया 'मणिशेखर'। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust