________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 237 चंद्र राजा ने एकान्त की इस बातचीत में गुणावली के गुणों की बहुत जी खोल कर प्रशंसा की, इससे गुणावली मन में बहुत खुश हो गई। बातचीत के सिलसिले में राजा चंद्र ने अपनी पत्नी रानी गुणावली से कहा, "हे प्रिये, / अब तो मुझे सिर्फ राज्य के कारोबार की चिंता है / मेरी बाकी सारी चिंताओं का बोझ तो तूने अपने सिर पर लेकर मुझे कितना निश्चिन्त बना दिया है।" एक बार चंद्र राजा ने अपने राजदरबार में विद्वानों और नगर के लोकमान्य सज्जनों को निमंत्रित किया। राजा ने उन सबके सामने वह सारी कहानी विस्तार से कह सुनाई, जिसमें वे मुर्गा बनाए गए थे वहाँ से लेकर उनके आभापुरी लौटने तक की सारी बातें आई थीं। राजा की कही हुई बातें सुन कर लोगों को आश्चर्य तो हुआ ही, लेकिन सब के मन पर आघात-सा लगा। राजा की बातें सुनने के बाद सबने मिल कर राजा चंद्र की जयजयकार का नारा लगाया और राजा के प्रति अपनी शुभकामनाएँ प्रकट की। अब राजा चंद्र अंत:पुर में अपनी रानियों के साथ स्वर्गीय सुख का उपभोग कर रहा था। कभी रानियाँ राजा को मधुर गीत सुनाती थीं, कभी नृत्य कला दिखाती थीं, कभी नई-नई बातें सुना कर राजा का मनोरंजन करता थीं, कभी क्रीड़ा करने के लिए उद्यान में ले जाती थीं और वहाँ राजा के साथ जलक्रीड़ा आदि का आनंद लेती थीं। चंद्र राजा इस समय भोगावली कर्म के उदय से विविध विषयों का भोग कर रहा था और उधर अपने विशाल साम्राज्य का शासन भी कर रहा था / ऐसी सुखसमृद्धि की अवस्था में भी राजा नटराज शिवकुमार और उसकी कन्या शिवमाला के उपकार को कभी नहीं भूलता था। दूसरे के किए हुए उपकार को जो नहीं भूलता है वही सच्चा सज्जन कहलाता है। उत्तम पुरुष संपत्ति की समृद्धि में या सुख में भी उपकारी द्वारा किए हुए उपकारों को कभी नहीं। भूलता है। यह कृतज्ञता भाव सकल कल्याण का निर्माता है। जिस मनुष्य में कृतज्ञता का भाव नहीं होता है उस मनुष्य की कोई कीमत नहीं होती है। यद्यपि चंद्र राजा ने पहले ही शिवकुमार को बहुत धन देकर उसे एक छोटा राजा-सा बना ही दिया था, फिर भी राजा को इतने से ही संतोष नहीं था। इसलिए अब उसने नटराज शिवकुमार को अनेक बड़े गाँव और नगर भेंट करके उसे हरदम के लिए सुखी बना दिया। इससे चंद्र राजा की कीर्ति चारों ओर फैल गई। राजा चंद्र कृतज्ञता के भाव का एक आदर्श नमूना ही सिद्ध हुआ। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust