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________________ 236 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र एक ही प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे किसी भी जन्म में आपकी सौतेली माँ जैसी सास न दे। मेरी सास ने मुझे जो सज़ा दी है, उसे मैं आजीवन नहीं भूल सकती हूँ। आपको मेरे सामने मुर्गा बन कर रहना पड़ा और वह देख-देख कर मुझे रोना पड़ा, इसके पीछे मेरी दुष्ट सास ही थी। ऐसा होने पर भी जब तक आप मुर्गे के रूप में ही सही, मेरे पास थे, तब तक मुझे कुछ . तो संतोष मिलता था। मैं आपसे अपने दिल की बात कह कर मेरा मन हलका कर लेती थी और आपकी सेवा में मेरा समय अच्छी तरह बीत जाता था . . लेकिन जब आप मुझे छोड़कर शिवमाला के साथ चले गए, तबसे मैंने अपने युग-युग जैसे ये लम्बे दिन कैसे बिताए इसे या तो मैं जानती हूँ, या फिर सर्वज्ञ परमात्मा ही जानता हैं। हे नाथ ! आपके यहाँ से शिवकुमार के साथ जाने के बाद मेरा जीवन पशु-पंछियों के जीवन से भी बदतर और दु:खदायक हो गया। आप यह मत मानिए कि यह गुणावली अपना महत्त्व - बताने के लिए ऐसा बोल रही हैं।" गुणावली के हृदय की बातें सुन कर चंद्र राजा ने उसे अपने हृदय से लगा लिया और उसे सांत्वना देने के लिए उसको थपथपाते हुए, फिर राजा चंद्र ने अपनी पटरानी को सांत्वना देते हुए कहा, “हे देवी! तुझे ऐसा बोलना शोभा नहीं देता है। मैं तो तुझे सच्चे स्नेह की अपनी प्राणेश्वरी मानता हूँ / तेरे प्रति होनेवाले इस व्यतिक प्रेम के कारण ही तेरा पत्र तोते की ओर से मिलते ही मैं तुरंत विमलापुरी से चल निकला और तेजी से यात्रा करता हुआ जल्द से यहाँ आ पहुँचा हूँ। हे देवी, यदि तेरे प्रति मेरे मन में प्रेम का भाव न होता, तो मेरा विमलापुरी से यहाँ लौट आना असंभव था। लेकिन तेरा प्रेम ही मुझे विमलापुरी से आभापुरी खींच लाया है / गुणावली, तू सचमुच गुणों की खान है, महासती है, उदार मन की है। तेरे मन में मेरे प्रति सच्चा प्रेमभाव है। यह बात तो मुझे उसी समय पता चल गई जब तूने भेजा हुआ तोता तेरा पत्र लेकर मेरे पास आया। मैंने लिफाफा खोला और पत्र पढना चाहा / लेकिन तेरे पत्र के प्राय: सभी अक्षर अस्पष्ट-से हो गए थे। जैसे-वैसे पढ़ कर, तेरी लिखी हुई बातों का रहस्य मैंने समझ लिया लेकिन उसी समय मैं समझ गया कि वह पत्र तूने आँखों से आँसू बहाते-बहाते लिखा था / तेरे मन की स्थिति समझने के कारण उसी समय मैंने निर्णय किया कि मुझे विमलापुरी से तुरन्त आभापुरी जाना चाहिए और तुझे मिलना चाहिए। हे देवी, अब तो तू मेरे साम्राज्य की पटरानी है। इसलिए तू अपनी रुचि के अनुसार घर का सारा कारोबार कर। तेरी छोटी बहनों से प्रेम से काम लें। इन सारी बहनों की सार-सँभाल करने की जिम्मेदारी तुझे सौंप कर अब मैं निश्चिन्त हो गया हूँ।" nirma P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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