________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 23 अब उचित समय जान कर, एक बडा महोत्सव करके राजा चंद्र ने बड़ी धूमधाम गुणावली को अपनी पटरानी के पद पर स्थापित किया। इससे अन्य सभी रानियाँ बहुत खुश गई। अब राजा चंद्र अपने राज्य का संचालन न्याय-नीति और कशलता से करने लगे इससे आभापुरी की सारी प्रजा बहत खश हई। चंद्र राजा के राज्य में कभी किसी तरह की चीन होने की फरियाद नहीं आती थी। उसके राज्य में सभी प्रजाजनों को मांस-मदिरा, जुआ, चार शिकार, परस्त्रीगमन, वेश्यागमन और हिंसा करना-इन बातों की सख्त मनाई थी। जब चंद्र राजा का प्राय: सारा जीवन ही धर्मपरायणतापूर्ण था, तो फिर उसके राज्य के प्रजा पाप क्यों करे ? क्योंकि कहा भी गया है कि 'यथा राजा तथा प्रजा।' अर्थात् राजा जैस होता है, वैसी ही उसकी प्रजा होती है। राजा धर्मी होता है, तो उसकी प्रजा भी धर्मी होती है राजा पापी हो, तो प्रजा भी पापी होती है। राजा नास्तिक होता है, तो प्राय: प्रजा भी नास्तिक होती है। चंद्रराजा तो क्षमाशील, दानवीर और गुणग्राही था। ऐसे राजा की प्रजा को दु:ख कह से होगा ? प्रजा राजा के एक शब्द पर प्राण देने के लिए नित्य तैयार रहती थी। एक दिन की बात है। राजा चंद्र और उसकी पटरानी गुणावली एकांत में बैठे थे। बात ही बातों में राजा चंद्र से रानी गुणावली ने कहा, “हे प्राणनाथ / आपके विरह में मैंने सोलह वर्ष * की लम्बी अवधि अत्यंत कष्ट से बिताई है। लेकिन मैं अपनी छोटी बहन प्रेमला का पर उपकार मानती हूँ, क्योंकि उसके कारण से ही आज मुझे फिर से आपके दर्शन हुए हैं।' अब गणावली को हँसी-मज़ाक सूझी। उसने हँसते-हँसते पति से कहा, "देखिए प्राणना यदि मैं आपकी सोतेली माँ की बातों में फँस कर उनके साथ विमलापुरी न जाती, तो आप प्रेमला से विवाह कैसे हो पाता ? इसलिए आपको मेरा उपकार स्वीकार करना ही चाहिए।' गुणावली ने फिर कहा, 'हे स्वामिनाथ, यदि आपकी माँ के क्रोधस्वरुप आप मुर्गा न ब होते. तो फिर सिद्धाचलजी की यात्रा करने और उसके द्वारा भवसागर के पार पाने का सौभाग आपको कहाँ से प्राप्त होता ? इसलिए मेरे अपकार को भी आपको उपकार ही मानना चाहिए कहते हैं कि सज्जन पुरुष हरदम दूसरों के दोष नहीं, बल्कि गुण ही ग्रहण करते हैं। में अपनी जडता के कारण अपनी सास की बात मानी, तो मैंने उसका कटु फल भी चखा। वाद में मेरी आँखों में से एक दिन भी आँसू सूखे नहीं। मैं तो परमात्मा प्राणनाथ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust