________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र प्रमुख अप्सरा की आवाज सुनते ही निर्भिक वीरमती मंदिर का दरवाजा खोल कर बाहर आई और उसने मुख्य अप्सरा के सामने अपना अपराध स्वीकार कर क्षमायाचना की। . प्रमुख अप्सरा ने वीरमती से पूछा, “तूने मेरा वस्त्र क्यों ले लिया ? तू कौन है और रात के समय यहाँ क्यों आई है ?" वीरमती ने अपनी परिचय देकर वहाँ आने का उद्देश्य बताया। उसने फिर कहा, “हे महादेवी / आप मुझ पर कृपा कीजिए, मुझे पुत्रदान कीजिए / मुझे पुत्रप्राप्ति का वरदान दीजिए। अभी तक मेरी गोद खाली है। मेरी गोद भर दीजिए। पुत्रप्राप्ति के लिए ही इतना बड़ा साहस कर के में यहाँ आ पहूँची हूँ। मेरी इच्छा पूरी कीजिए।" __ इतना कह कर वीरमती प्रमुख अप्सरा के चरणों पर झुक गई / जहाँ स्वार्थ सिद्ध होने की संभावना होती है वहाँ मनुष्य झुकने में विलंब नहीं करता है / वीरमती प्रमुख अप्सरा के सामने सद्गदित होकर पुत्रप्राप्ति के लिए बार-बार प्रार्थना कर रही थी। वीरमती की विनम्रताभरी प्रार्थना सुन कर, उसके प्रति दया उत्पन्न होने से प्रमुख अप्सरा ने अपने अवधिज्ञान के प्रयोग से देखा और फिर वीरमती से कहा, "हे साहसिक-शिरोमणी स्त्री, तेरे भाग्य में पुत्रप्राप्ति होना | नहीं लिखा है / भाग्य के प्रसन्न हुए विना देवता भी मनुष्य को इच्छित चीज देने को समर्थ नही होते हैं। फिर भी तेरे सत्व से प्रसन्न होकर मैं तुझे कई विद्याएँ प्रदान करती हूँ।" / / प्रमुख अप्सरा की सहानुभूतिपूर्ण बातें सुन कर अब वीरमती जान गई कि मेरे भाग्य में पुत्रसुख नहीं लिखा है। इसलिए अब पुत्रप्राप्ति के लिए जिद करना निरर्थक है / लेकिन जब प्रमुख अप्सरा मुझ पर प्रसन्न होकर मुझे कुछ विद्याएँ देने को तैयार है, तो उन्हें ही क्यों न प्राप्त कर लूं ? इस प्रकार से मन में विचार कर वीरमती ने प्रमुख अप्सरा से कहा, “महादेवी, आप मुझे विद्याएँ दान करने की कृपा कीजिए।" प्रमुख अप्सरा ने वीरमती को आकाशगामिनी, शत्रुबलहारिणी, विविध कार्यकारिणी और जलसारिणी-ये चार विधाएँ आम्नाय (रूढी) के साथ प्रदान की / चार-चार दैवी विद्याएँ अनायास मिल जाने से वीरमती की खुशी का ठिकाना न रहा। प्रमुख अप्सरा ने वीरमती से कहा, “हे स्त्री, ये विद्याएँ सिद्ध करने पर तेरा सौतेला पुत्र चंद्रकुणार, तेरा पति, प्रजा और सभी शत्रुराजा तेरे अधीन रहेंगे। तू मन में जो चाहेगी, वह कर सकेगी। तेरा यश और कीर्ति चारों दिशाओं में फैलेंगे। तेरे नाम का डंका सर्वत्र बजेगा। तेरी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust