________________ 18 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र उसका मन अंदर ही अंदर नाच उठा। उसे लगा कि अब मेरे कार्य की सिद्धि बिलकुल निकट है। अब वह अपने मन में शेख चिल्ली की तरह अनेक प्रकार के मनसूबे बाँधने लगी। . ____ इधर कुछ देर तक बावडी के निर्मल और सुगंधित जल में यथेच्छ नहा कर सभी अप्सराएँ बावडी के तट पर आई / सभी अप्सराएँ अपने-अपने वस्त्र लेकर पहनने लगी / प्रमुख अप्सरा को चबूतरे पर बहुत देर तक ढूँढ़ने पर भी जब अपना नीला वस्त्र दिखाई न दिया, तब उसने अपने साथ होनेवाली अप्सराओं से अधिकारभरी वाणी से कहा, “हे सखियो, मेरा वस्त्र कहीं छिपा कर तुम मेरे साथ मजाक क्यों कर रही हो ? क्या तुम्हें मुझसे कोई भय नहीं लगता ? मेरा वस्त्र इसी क्षण लाकर मुझे दे दो, अन्यथा मैं तुम सबको कड़ी सजा दूंगी।" प्रमुख अप्सरा की ये क्रोधभरी बातें सुनते ही भयकंपित हुई सभी अप्सराओं ने अपनी स्वामिनी से कहा, "हे स्वामिनी, हम में से किसीने भी आपका वस्त्र नही छिपाया है।' क्या हम आपसे भी मजाक कर सकती है ? यह आपके मन में कैसे आया ? / सभी अप्सराएँ चारों ओर अपनी स्वामिनी के वस्त्र की खोज करने लगीं। लेकिन वस्त्र कहीं नहीं मिला और मिलता भी कैसे ? वस्त्र था मंदिर में छिप कर खडी वीरमती के हाथ में और अप्सराएँ उसे ढूँढ़ रही थी मंदिर के बाहर ! जैसे, जो सुख आत्मा के भीतर है वह बाहर भौतिक पदार्थो में खोजने से नहीं मिलता है, वैसे ही मंदिर के अंदर होनेवाला वस्त्र मंदिर के बाहर कितना ही ढूँढने पर आखिर कैसे मिलता? मंदिर के बाहर वस्त्र ढूँढते-ढूँढते एक अप्सरा मंदिर के निकट आ पहुँचो। उस चतुर अप्सरा ने देखा कि मंदिर का दरवाजा बंद है। उसने सोचा, जब हम सब मंदिर से बाहर निकलीं, तो दरवाजा खुला था। अब बंद है। जरूर यहीं दाल में कुछ काला है। निश्चय ही कोई यहां आकर हमारी स्वामिनी का नीला वस्त्र चुरा कर मंदिर में जाकर छिप गया है / इस अप्सरा ने अपने मन की आशंका अपनी स्वामिनी के पास जाकर प्रकट की। प्रमुख अप्सरा मंदिर के पास चली आई और उसने मंदिर के दरवाजे पर धक्का मारा, फिर भी दरवाजा नहीं खुला। इसलिए उसने जोर से पुकार कर कहा, 'कौन है अंदर ? तुरन्त बाहर आ जा!' P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust