________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र उसे वहाँ बहुत देर तक प्रतीक्षा नहीं करनी पडी। थोड़े ही समय के बाद वहाँ भगवान की मूर्ति के आगे नृत्य-पूजा करने के लिए अप्सराओं का एक समूह आ पहुँचा। सबसे पहले अप्सराओं ने ऋषभदेव (आदिश्वर) भगवान को प्रणाम कर केशर-चंदन आदि उत्तम द्रव्यों से भगवान की पूजा की। परमात्मा की पूजा से पूजक पूज्य बन जाता है ! पामर पुरुषोत्तम बन जाता है ! नर नारायण बन जाता है ! रंक राजा बन जाता है ! ! जीव शिव बन जाता है ! ! ! भगवान जिनेश्वरदेव को पूजा-संसार रुपी सागर पार करानेवाली श्रेष्ठ नौका है ! वह शिवमहल पर चढने की सौढी है ! सकल कल्याण की कंद है !! सकल सुख का परम साधन है ! ! ! संकटरूपी पर्वत का नाश करने के काम आनेवाला वज्र है ! शिवलक्ष्मी के लिए वशीकरण है ! ! सकल दोषों-दर्दो के लिए यह परम औषधि है ! ! ! सुख-सौभाग्य-समाधि और सद्गति देनेवाला यह अपूर्व कल्पवृक्ष है ! दूर्गति का द्वार बंद करनेवाली अर्गला (अवरोध) है यह !! - जिनपूजा सफल अर्थो को साधनेवाली है। जिनपूजा के बल पर कोई कार्य सिद्द होना असंभव नहीं है। अप्सराओं ने भगवान की द्रव्यपूजा पूरी की और अब उन्होंने भावपूजा प्रारंभ को। विविध प्रकार के वाद्यों की लय और ताल पर उन्होंने अपने दिव्य नृत्य की कला भगवान के सामने प्रस्तुत की। लम्बे समय तक उन्होंने अनेक प्रकार के नृत्य किए, अपने कोकिलकंठों से भगवान के गुण गाकर उन्होंने सारे मंदिर को गुँजा दिया। बहुत देर तक मंदिर उनकी मधुर वाणी से गूंज उठा। फिर वे सारी अप्सराएँ मंदिर से बाहर आई / मंदिर के बाहर एक निर्मल और सुगंधित पानी से भरी हुइ बावडी थी। बावडी को देखते ही सभी अप्सराओं के मन में स्नान करने की प्रबल इच्छा जाग उठी। उन सबने बावडी के किनारे पर अपने-अपने वस्त्र उतार कर रख दिए और स्नान के लिए वे बावडी में प्रविष्ट हो गई। मंदिर के गुप्त भाग में छिप कर खड़ी हुई रानी वीरमती ने यह अच्छा अवसर जाना। वह चुपचाप मंदिर से बाहर निकली और बावडी के पास आ पहुँची। उसने बावडी के तट पर अनेक वस्त्र देखे, उनमें प्रमुख अप्सरा के नीले वस्त्र भी थे। उसने इधर-उधर एक नजर दौड़ाई, चुपके से प्रमुख अप्सरा का नीला वस्त्र उठाया और वह चुपचाप मंदिर में लौट आई। उसने धीरे से मंदिर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और वह उस नीले वस्त्र के साथ पहली जगह पर जाकर छिपी रही। तोते के कहने के अनुसार प्रमुख अप्सरा का नीला वस्त्र हाथ में आने से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust