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________________ 16 - श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र समाप्त हो जाएगी और उन्हें शाश्वत सुख की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन स्वार्थ सिद्ध करने में अंध बनी हुई राजा वीरसेन की इस पटरानी वीरमती ने यह भी नहीं सोचा कि ऐसी रात के समय मुझे अकेले कहीं जाते हुए किसीने देख लिया तो मेरे पति, मेरा कुल और मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी ; सबको व्यर्थ ही बदनाम होना पड़ेगा। अपने पति राजा वीरसेन से पूछे बिना, उन्हें बताए बिना अकेले ही चोर, डाकु और हिंसक प्राणियों के भय की परवाह किए बिना रानी वीरमती उत्तर दिशा की ओर तेज कदमों से चली जा रही थी। इस संसार में एकमात्र 'स्वार्थ' ऐसी चीज है कि उसके लिए मनुष्य मन, वचन, काया की सारी शक्ति लगा कर दत्तचित्त होकर काम करता जाता हैं। अंत में स्वार्थसिद्धि होगी या नहीं यह तो भाग्य के अधीन ही है। प्रबल पुरुषार्थ दिखाने पर भी कार्यसिद्धि भाग्याधीन हो जाती है। प्रारब्ध का पीठबल हो तो ही मनुष्य का पुरुषार्थ सफल सिद्ध होता है। प्रारब्ध के पीठबल से रहित अकेला पुरुषार्थ सफल नहीं हो पाता है / प्रारब्ध के अनुकूल होने पर ही पुरुषार्थ सफल होता है और प्रारब्ध के प्रतिकूल होने पर चाहे जितना पुरूषार्थ दिखाने पर भी मनुष्य को सफलता नहीं मिलती है। पुरुषार्थ व्यर्थ सिद्ध हो जाता है। रानी वीरमती अंकेली ही निर्भयता से तोते के बताए हुए मार्ग से जा रही थी। चाँदनी रात में रास्ते में अनेक मनोहर दृश्य सामने आ रहे थे, लेकिन उन द्दश्यों को देखने में उलझे बिना वह अपनी धुन में आगे ही आगे बढती जा रही थी। जैसे मुमुक्षु मनुष्य मोक्षमार्ग पर सिर नीचे कर चलते समय रास्ते में अनेक मनोहर विषय सामने आने पर भी उनकी ओर देखे बिना, उनमें आसक्त हुए बिना आगे ही आगे की ओर चलता जाता है, उसी तरह रानी वीरमती आगे ही आगे चली जा रही थी। बहुत देर तक लगातार चलती रहने पर उसे दूर श्री ऋषभदेव भगवान के मंदिर का शिखर दिखाई दिया। शिखर पर सुवर्णकलश चमक रहा था, शिखर पर की ध्वजा हवा के बहने से लहरा रही थी। वीरमती ने मंदिर के प्रवेशद्वार में पहुँच कर निसीहि' कह कर अंदर प्रवेश किया। ऋषभदेव भगवान की मूर्ति को उसने श्रद्धा से वंदन किया और दर्शन किए। भगवान की स्तुति का पाठ कर उसने तीन बार खमासमण (प्रणाम) दिए / उसने / अपने इच्छित कार्य की सिद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना की और वह मंदिर के किसी गुप्त भाग में छिप कर खडी रही। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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