________________ 232 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र आभापुरी के समस्त महाजनों को साथ लेकर और सेना के साथ सुबुद्धि मंत्री चंद्र राजा का नगरी में स्वागत करने के लिए चले गए। घर-घर में लोगों ने बंदनवार बँधवाए। आभापुरी को इंद्रपुरी की तरह सजाया-संवारा गया। सबने मिलकर बड़ी धूमधाम से राजा चंद्र का नगरी में स्वागत किया। नगर में प्रवेश कर चंद्र राजा राजमहल में और फिर राजदरबार में पहुँच कर सोलह वर्ष की लम्बी अवधि के बाद राजसिंहासन पर आसीन हो गए / राजा ने अपने नगरी में पुनरागमन की खुशी में राजसेवकों और प्रजाजनों को उत्तम वस्त्रालंकार दिए और सबका यथोचित सम्मान किया। राजा ने नगरी के दीन-दुःखियों को अन्न-वस्त्र-आदि का मुक्तहस्त से दान किया। नगरी में सर्वत्र आनंद ही आनंद व्याप्त हो गया था। . सोलह वर्षों के लम्बे विरह के बाद चंद्र राजा के अपनी नगरी में लौट आने से उनके दर्शन करने के लिए जनता की भीड़ इकट्ठा होने लगी। दर्शन के लिए आनेवालों का नित्य ताँता ही बँधा रहा / अपने रक्षक, महापुण्यवान् और पवित्र राजा के दर्शन करने की भावना किसके मन में नहीं होगी ? आभापुरी में घर-घर में मंगलगीत गाए जाने लगे। लोगों ने बंदनवारों से अपने घरों के दरवाजे सजाए। आनंद के आवेश में लोग उछलनेकूदने-नाचने-गाने लगे। ____चंद्र राजा के दर्शन करके सबके हृदय में स्नेहसागर उमड़ने लगा . सब लोग चंद्र राजा की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते जाते थे। चंद्र राजा के आगमन का आनंद मनाने के लिए आभापुरी में महीनों तक तरह-तरह के महोत्सव हररोज होते रहे। ऐसा लग रहा था मानो चंद्र राजा के आगमन से सारी आभापुरी में और नगरवासियों में नवचैतन्य संचरित हुआ हो। राजा के बिना निष्प्राण सी पड़ी नगरी में कदम सप्राण-सजीव-सचेत हो गई ! इन महोत्सवों के बाद अब चंद्र राजा ने राजदरबार विसर्जित किया और नई सात सौ रानियों और प्रेमलालच्छी के साथ अपने अंत:पुर में प्रवेश किया। अपने पति को लम्बी अवधि के बाद अंत:पुर में आते देख कर गुणावली की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उसने सामने आकर अपने प्राणाधर चंद्र राजा के कपाल पर कुंकुमतिलक करके ऊपर अक्षत लगाए। फिर राजा के सिर पर पुष्पों और मोतियों की वर्षा कर उसने अपने प्राणनाथ का हार्दिक स्वागत किया। इसके बाद उसने चंद्र राजा के साथ-साथ आई हुई प्रेमलालच्छी और अन्य नवपरिणीत 700 राजकन्याओं का स्वागत किया। अब ये सबकी सब गुणावली की सौतें बन कर उसके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust