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________________ | | | . श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 233 अंत:पुर में आ पहुँची थीं। लेकिन गुणावली ने उन संबको अपनी छोटी बहनों की तरह स्वीकार कर लिया। चंद्र राजा की अभी-अभी बनी हुई नई 700 रानियों को तो गुणावली ने प्रेम से अपने हृदय से लगा कर उनका बहुत सम्मान किया। चंद्र राजा की इन नई 700 रानियों ने भी गुणावली को अपनी बड़ी बहन मान लिया। उन्होंने उसके चरणों में झुक कर उसे आदर से प्रणाम किया और सस्मित मुद्रा से उसका क्षेमकुशल भी पूछा। सभी रानियाँ प्रेम से एक दूसरे के साथ ऐसे मिल गई जैसे दूध पानी में मिल जाता है। पटरानी गुणावली ने इन सभी नई रानियों के प्रति अत्यंत स्नेह का व्यवहार किया। इस संसार में प्रेमदान-स्नेहदान-सबसे बडा दान हैं। आज के युग में मानव जाति में प्रेमदान की बड़ी कमी दिखाई देती है। आज के युग में करोड़ो को दान करनेवाले दानवीर मिलते है / अखंड ब्रह्मचर्य का आजौवन पालन करनेवाले ब्रह्मचारी भी मिलते हैं। बहुत बड़े उग्र तप करनेवाले तपस्वी भी प्राप्त होते हैं। बड़े-बड़े त्यागी और योगी भी मिलते हैं। लेकिन शुद्ध अंत:करण से प्रेम का दान करनेवाले भाग्य से ही मिलते हैं, बहुत विरले होते हैं। जब तक किसी से स्वार्थ सिद्ध होता है, तब तक स्नेह प्रकट करनेवालों की कमी नहीं होती, लेकिन नि:स्वार्थ स्नेह का दान करनेवाला आज हजारों में एकाध ही मिल पाता है। लेकिन यहाँ चंद्र राजा की सभी रानियाँ अत्यंत गुणानुरागी और गुणी थी। इसलिए वे सब एक दूसरे के साथ हिलमिल कर और प्रेमभाव से रहने लगी। गुणावली की हर आज्ञा का भी तुरन्त पालन करती थी। इधर गुणावली भी अपने हृदय से निरंतर निकलनेवाले प्रेम के पवित्र प्रवाह से अपनी इन सभी छोटी बहनों को सराबोर कर देती थी। अपनी सभी रानियों के बीच एक दूसरे के प्रति होनेवाला यह अटूट प्रेमभाव देखकर चंद्रराजा की प्रसन्नता का कोई पार न रहता था। जब कोई अपने आश्रितों और परिजनों को परस्पर प्रेमभाव से रहते हुए देखता है, तब उसको आनंद क्यों न होगा ? इसके विपरीत उन्हें एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या-द्वेष करते हुए और निंदा की बातें करते देखकर किसको दुःख हुप बिना रह सकता है ? अब चंद्र राजा ने हर एक रानी के रहने के लिए अलग-अलग महल का प्रबंध कि: और सभी रानियों को उनके महलों में उनकी दासियों के साथ रहने के लिए भेज दिया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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