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________________ 222 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र तात्पर्य उसने जान लिया कि गुणावली ने मुझे यथाशीघ्र आभापुरी लौटने के लिए अनुरोध किया . है। इससे राजा चंद्र सोच-विचार में डूब गया। राजा के मन में आया, “यहाँ तो मैं सुखपूर्वक रह रहा हूँ। लेकिन वर्षों से पति के विरह में असहाय बनी गुणावली के संकटमय दिन कैसे कटते होंगे ? मैंने तो कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया। अब मेरा यह कर्तव्य बनता है कि मैं तुरन्त यहाँ से आभापुरी चला जाऊँ और अपने राज्य को सँभाल लूँ और मेरी पटरानी गुणावली को सुखी करूँ! जब प्रेमलालच्छी ने अपने पति राजा चंद्र को एकदम विचारमग्न होते हुए देखा, तो उसने अपने पति से पूछा, "हे नाथ / आज आप अचानक इतने उदास क्यों हो गए हैं ? क्या आपको अपने देश की याद आ रही हैं ? या आपको मेरी बहन गुणावली की याद सता रही हैं ? क्या आपको सौराष्ट्र की भूमि पसंद नहीं है ? या मेरी सेवा में कोई कमी महसूस होने लगी है ? हे प्राणनाथ / यदि आप गुणावली की स्मृति के कारण उदास हो गए हैं, तो मेरी उस बड़ी बहन को आप यहीं बुला लीजिए मैं अपनी उस बड़ी बहन की दासी बन कर रहूँगी और उसकी हर आज्ञा शिरसावंध मान कर उसका आदर से पालन करूँगी। दूसरी बात यह है कि मेरे पिताजी ने आपको अपना आधा राज्य तो दे ही दिया हैं। उसे छोड़ कर आभापुरी जाना क्या आपको उचित लगता है ? . .प्रेमला की प्रेमभरी बातें सुन कर चंद्र राजा ने उससे कहा, "हे प्रिये ! इस समय मेरी आभापुरी राजा के बीना शून्य बन गई है। राजा के बिना होनेवाली आभापुरी पर यदि आसपास के शत्रु राजा अवसर देख कर हमला करेगा और राज्य पर अपना कब्जा कर लेगा, तो क्या होगा ? मेरे लिए यह कितनी बेइज्जती की बात होगी। हे प्रियतमे, दूसरी बात यह है कि आभापुरी से इस तोते के साथ गुणावली का पत्र आया है। इसलिए मेरा यथाशीघ्र आभापुरी जाना अत्यंत आवश्यक है।" बुद्धिमान् प्रेमलालच्छी को पति की इच्छा समझ लेने में देर नहीं लगी। उसने जान लिया की अब राजा चंद्र आभापुरी गए बिना नहीं रहेंगे / इसलिए उनके आभापुरी जाने में बाधा डालना किसी तरह उचित नहीं है। और वैसे मुझे भी तो अपना ससुराल देखने की प्रबल इच्छा चंद्रराजा ने प्रेमला को मनाया और फिर प्रेमला के पिता के पास जाकर उनसे सारी बात कह दी। चंद्र राजा ने अपने ससुर राजा मकरध्वज से कहा - "हे राजन्, अभी-अभी आभापुरी से दूत गुणावली का पत्र लेकर आया है / मेरा तुरन्त आभापुरी जाना अत्यावश्यक हो गया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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