________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 221 जा रहा है। मेरी हर रात आँखों से बहनेवाले आँलुओं से गीले हुए वस्त्रों में ही जाती है। उनके विरहरूपी अग्नि से मेरा हृदय जलता रहता है। यह विरहरूपी आग तो तभी बुझेगी जब मेरे प्राणनाथ से मेरा संगम होगा। लेकिन मेरे मन की इस हालत का उन्हें कैसे पता चलेगा ? - रानी गुणावली जब अपने महल में पति के विचार में मग्न होकर इस तरह सोच रही थी, तब वहाँ एक तोता आया / वह मनुष्य की भाषा में गुणावली से कहने लगा, “हे सुंदरी ! तू ऐसी - शोकमग्न क्यों दिखाई देती है ? तुझे किस बात का दुःख हैं ? अगर तुझे कोई दु:ख है, तो मुझे बता दे। मैं दिव्य पक्षी हूँ। इसलिए यदि तू अपना दु:ख मुझे बताएगी, तो उसे दूर करने की भरसक कोशिश मैं अवश्य करूँगा। गुणावली ने अपने महल में अचानक हुए इस तोते के आगमन से और उसकी बात से चित्त में चमत्कृत हुई और धीरज धारण कर उस तोते से बोली, “हे पक्षिराज ! सोलह वर्ष E लम्बी अवधि के पतिविरह के दुःख से मैं दु:खी हूँ। मेरे दु:ख का मुख्य कारण यही है। मुझे ऐसा E कोई मनुष्य दिखाई नहीं देता है, जो मेरा दूत बनकर मेरे पति के पास मेरा संदेश पहुँचा देगा। और मेरे पति से मेरे लिए संदेश लेकर आए / मेरे दिल का यह दु:ख तो सर्वज्ञ परमात्मा ही जानते हैं।" गुणावली के दु:ख की बात सुन कर तोता उससे बोला, “बहन, तू खेद मत कर / तू मुझे तेरे पति के नाम एक पत्र लिखकर दे दे / मैं तेरा पत्र लेकर तेरे पति के पास चला जाऊँगा / तेरे दु:ख का संदेश तेरे पति को दूंगा और तेरे लिए उसका संदेश भी लेकर आऊँगा।" .. ___तोते की बात सुन कर गुणावली अत्यंत हर्षित हुई। उसने तुरन्त अपने पतिराज राजा चंद्र के नाम एक पत्र लिखा। लेकिन पत्र लिखते लिखते विरह दु:ख के कारण उसकी आँखों से गिरे हुए आँसुओं से वह पत्र गीला हो गया / वही पत्र एक लिफाफे में बंद कर के उसने वह लिफ़ाफा तोते को सौंपा। तोता गुणावली का दिया हुआ लिफ़ाफा लेकर वहाँ से उड़ा और आकाशमार्ग से उड़ता हुआ कुछ ही समय में विमलापुरी पहुंच गया। उसने राजमहल में पहुँच कर गुणावली का दिया हुआ लिफ़ाफा राजा चंद्र को दे दिया। राजाचंद्र ने तोते से पत्र लेकर, एकान्स में जाकर वह खोला और बड़े कुतूहल से वह पत्र पढ़ने लगा। लेकिन गुणावली की आँखों से गिरे हुए आंसुओं से पत्र के अनेक अक्षर इतने अस्पष्ट हो गए थे कि पढ़े नहीं जा सकते थे। फिर भी राजा चंद्र ने पत्र के अक्षर जोड़ जोड़ कर जैसे-वैसे उसे पढ़ा और पत्र - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust