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________________ 220 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र बढ़ी / इसलिए प्रजाजनों ने मिल कर एक पत्र लिख कर विमलापुरी भेज दिया। पत्र में प्रजाजनों ने लिखा था, "आभानरेशजी, दुष्टा वीरमती पर विजय पाकर उसका विनाश करने के लिए आभापुरी वासियों आप यथाशीघ्र आभापुरी पधार कर सब को दर्शन दीजिए और.. उपकृत कीजिए।" सास वीरमती के भय से सर्वदा और सर्वथा मुक्त हुई रानी गुणावली तो अब अत्यंत आतुरता से अपने प्रिय पति की मार्गप्रतीक्षा कर रही थी। पतिव्रता को पतिविरह में सुख कहाँ से मिल सकता है ? अब गुणावली की स्थिति तो बिलकुल पानी से बाहर निकाली गई मछली की तरह हो गई थी। एक बार गुणावली ने अपने मन-ही-मन अपने प्रिय पति आभानरेश चंद्र को उद्देश्य कर कहा, "हे प्राणाधार, ऐसा लगता है कि आपको सौराष्ट्र देश ही प्रिय लग रहा है / यह ठीक भी है, क्योंकि मेरी छोटी बहन प्रेमला ने ही आपका हित देखा है। उसके प्रयत्नों से ही आपको मुर्गे के रूप में से मनुष्यत्व की पुनाप्राप्ति हो गई है। दूसरी बात, आप विमलापुरी के महाराज के दामाद बन गए हैं। फिर सास-ससुर के आदरातिथ्य में क्या कमी हो सकती है ? लेकिन हे स्वामिनाथ ! ससुराल में बहुत समय व्यतीत करना आपके जैसे अभिमानी राजा को शोभा नहीं देता है। इसलिए यथाशीघ्र अपनी नगरी आभापुरी में पधारिए और मुझे दर्शन दीजिए / लेकिन कौन ऐसा परोपकारी पुरुष मुझे मिलेगा जो मेरे मन की यह बात विमलापुरी में जाकर मेरे नात को बता दे। - फिर लोगों में यह भी राय प्रचलित है कि पुरुषों को पहली पत्नी की तुलना में दूसरी पत्नी अधिक प्रिय लगती है। सोलह कलाओं से पूरी तरह खिले हुए पूनम के चंद्रमा के दर्शन का अनादर करके लोग क्या दूज के चाँद के दर्शन के लिए हल्ला नहीं मचाते है ? कहा भी गया है - 'प्रायश: नवनव गुणंरागी सर्वलोकः।' अर्थात्, प्राय: लोग नए-नए गुणों के अनुरागी होते हैं। इसीलिए लगता हैं कि मेरे पति आभानरेश चंद्र भी अपनी नई पत्नी प्रेमला के प्रेम में फंस गए हैं। ___ मैं तो अपनी सौतेली सांस की बातों में आगई। मेरे इस बर्ताव के कारण उनके मन में मेरे प्रति प्रेम होगा भी तो कहाँ से ? दूसरी बात, यहाँ आभापुरी में निवास होते हुए ही उनको मनुष्य से मुर्गा बनना पड़ा था। इससे अब उन्हें विमलापुरी से आभापुरी आना कैसे भाएगा ? . लेकिन प्रियतम आभानरेश के बिना उनके विरहदुःख से-मेरा शरीर प्रतिक्षण सूखता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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