________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ___219 ‘बंध समय चित्त चेतिए, उदये शो संताप ?' अर्थात्, कर्मबंध के समय ही सावधान हो जाइए, पापकर्म उदय होने पर संतप्त होने से ! क्या लाभ ? अब आकाश में से देवताओं ने चंद्र राजा पर पुष्पवृष्टि कर के जोर शोर से उसकी जयजयकार की / 'पुण्योदय पर विजय और पापोदय पर पराजय' यह कर्मसत्ता का सनातन सिद्धान्त है। दूसरी बात यह है कि जो धर्मात्मा के साथ बैर बाँधता है, अंत में उसका विनाश हुए बिना नहीं रहता है। वीरमती ने महाधर्मात्मा राजा चंद्र के साथ बैर बाँधा, तो अंत में उसकी दुर्गति और विनाश हुआ। वीरमती को हरदम के लिए समाप्त करके चंद्र राजा अपनी अश्वसेना के साथ वीमलापुरी में लौट आया। विमलापुरी में पहुँचते ही उसने विजयवाद्य बजाया। इस बात का पता चलते ही मकरध्वज राजा अत्यंत हर्षित हुआ। उसने अपनी खुशी प्रकट करने के लिए अपने दामाद चंद्र . राजा को अपना आधा राज्य देकर उसे सम्मानित किया। पुण्योदय जिसका सम्मान करता है, उसका सम्मान सब करते हैं। अपने पति की विजय की बात सुन कर प्रेमला के आनंद का ठिकाना न रहा। अब वह प्रसन्नता से अपने पतिदेव राजा चंद्र की सेवा करते हुए सांसारिक सुखों का उपभोग करने लगी। अब राजा चंद्र भी सभी तरह से भयमुक्त हो आया और अवर्णनीय सुखोपभोग करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगा। . 'चंद्र राजा ने वीरमती का विनाश किया' यह खबर किसी देवता ने आभापुरी में जाकर गुणावली को दे दी। गुणावली ने यह शुभ समाचार सुनते ही अत्यंत प्रसन्न होकर मंत्री सुबुद्धि को अपने महल में बुलाया और उन्हें वीरमती की मृत्यु की खबर दे दी। दुष्टा वीरमती की मृत्यु की खबर गुणावली से सुन कर मंत्री सुबुद्धि हर्षावेश में आ गये / उन्होंने सारी आभापुरी में ढिंढोरा पीट कर वीरमती की मृत्यु की खबर प्रसारित कर दी। आभापुरी की जनता ने वीरमती की मुत्यु के उपलक्ष्य में हर्षपूर्वक एक बड़ा महोत्सव मनाया और उस दुष्टा की मृत्यु की खुशी मनाई। पापी की मृत्यु से किसे शोक होगा ? आभापुरी वासियों ने एक सितमगर के पंजे से आभापुरी हरदम के लिए मुक्त हो गई, इस बात का आनंद अनुभव किया और उसे मनाया। अब आभापुरी के प्रजाजनों की अपने प्रिय राजा चंद्र के पुनर्दर्शन की उत्सुकता बहुत P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust