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________________ 216 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र वीरमती की बात सुनकर मंत्री ने कहा, “रानी जी, आप खुशी से विमलापुरी जाइए। मैं आपको बिलकुल रोकना नहीं चाहता हूँ। आप निश्चित होकर जाइए। जब तक आप विमलापुरी से वापस न आएँ, तब तक मैं आभापुरी का दैनंदिन कारोबार अच्छी तरह सँभालूँगा / आप निश्चित होकर जाइए और अपनी इच्छा के अनुसार विमलापुरी में रहिए / यहाँ की किसी प्रकार से चिंता मत कीजिए।" मंत्री की विवेकपूर्ण और मीठी लगनेवाली बातें सुन कर वीरमती बहुत खुश हुई। वह अपने मंत्री की जी खोलकर प्रशंसा करने लगी। कुछ मंत्री की जी खोलकर प्रशंसा करने लगी। कुछ देर बाद मंत्री महोदय वहाँ से चले गए। मंत्री के जाते ही वीरमती ने फिर से अपनी मंत्रशक्ति के प्रयोग से सभी देवताओं को अपने पास बुला लिया। उन सभी देवताओं को साथ में लेकर और हाथ में तलवार लेकर उसने विमलापुरी की ओर आकाशमार्ग से प्रयाण किया / अत्यंत अभिमानी होनेवाला मनुष्य अपने हितैषियों की हितशिक्षा को भी नहीं मानता है। बहुत घमंडी होनेवाले रावण ने भी अपने छोटे भाई विभीषण की कही न्यायी बात कहाँ मानी थी ? वह तो अपने ही धमंड में मग्न रहकर अंत में नष्ट हो गया। आकाशमार्ग से जाती हुई वीरमती अपने मन में विचार कर रही थी कि मैं अभी विमलापुरी पहुँच कर चंद्र को यमसदन को भेज दूंगी ? लेकिन मिथ्याभिमानी वीरमती को कहाँ पता था कि चंद्र को यमसदन पहुँचाने से पहले उसे खुद को मर कर नरक का मेहमान बनना पड़ेगा ? जगत् में मनुष्य अपने मन में जो चाहता है, वह सब होता थोड़े ही है ? जब तक भाग्य मनुष्य के अनुकूल होता है, तब तक सबकुछ मनचाहे ढंग से होता रहता है, लेकिन भाग्य प्रतिकूल होते ही सब मन की इच्छाओं के विपरीत होता है। एक बार भाग्य की अनुकूलता से यदि दाँव सीधा पड़ जाए, तो वह हरदम सीधा ही पड़ेगा, ऐसा मनुष्य को कभी नहीं मानना चाहिए। - अब वीरमती का विनाशकाल निकट आया था। इसलिए विपरीत बुद्धि के कारण अब / वह देवताओं की सलाह मानने को भी तैयार नहीं थी। भाग्य और भवितव्यता के सामने मनुष्य का कोई वश नहीं चलता हैं / उस समय वीरमती के लिए दोनों भी प्रतिकूल थे। इसलिए तो वह देवताओं की सलाह अनसुनी कर बड़े अभिमान से चंद्रराजा को मार डालने के उद्देश्य से विमलापुरी की ओर आकाशमार्ग से तेजी से चली जा रही थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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