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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र . 217 उधर चंद्रराजा का परमभक्त होनेवाले एक देवता ने चंद्रराजा के पास आकर कहा, “हे राजन्, आपकी सौतेली माँ वीरमती आपका विनाश करने के लिए आकाशमार्ग से विमलापुरी आ रही हैं। इसलिए आप सावधान हो जाइए। मैं गुप्त रीते यह खबर देने के लिए आया हूँ। आपका पुण्यबल इतना जोरदार हैं कि वीरमती आपका बाल भी बांका नहीं कर सकती है, फिर भी आपको सावधान करना उचित है। यह मान कर मैं आपके पास आया हूँ। आप वीरमती का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाइए / ऐसा करना ही आपके लिए उचित होगा। देवता की कही हुई बातें सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए चंद्रराजा ने विमलापुरी के मार्ग में ही सौतेली माँ वीरमती का सामना करने के लिए जाकर उसे रोकने का निश्चय किया। इसके / लिए चंद्रराजा ने सभी प्रकार की तैयारी कर ली। चंद्रराजा ने वायु की गति से चलनेवाले घोडों / की एक सेना सुसज्जित कर दी। फिर चंद्रराजा ने अपने शरीर पर कवच धारण कर लिया। वह एक अश्वरत्न पर सवार हुआ। अपने साथ सात हजार घुड़सवारों की सेना लेकर शिकार . करने के लिए जाने का बहाना बना कर वह विमलापुरी के बाहर निकला। = थोड़ी दूरी पर जाते ही उसने वीरमती को आकाशमार्ग से विमलापुरी की ओर आते हुए देखा / क्रोधावेश में होने के कारण वह अत्यंत भयंकर दिखाई दे रही थी। उसके हाथ में चमकती हुई तीखी धारवाली नंगी तलवार थी। चंद्र राजा ने अपने मन में विचार किया कि मेरी सौतेली माँ वीरमती मानो मुझे आभापुरी पधारने के लिए निमंत्रण देने के लिए ही आ रही हैं! . वीरमती ने आकाश में से दूर से ही देखा कि मेरा सौतेला पुत्र राजा चंद्र मेरे सामने आ हा है। इसलिए आकाश में से ही उसने कहा, "अरे चंद्र, अच्छा हुआ कि तू मेरे सामने भाया। मुझे तुझे खोजने के लिए मेहनत नहीं करनी पडी। मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि तेरे इन में आभापुरी लौट आने की इच्छा हैं। लेकिन याद रख कि तेरे मन को यह अभिलाषा कभी पूरी नहीं हो सकेगी। अब मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगी। तू अपने इष्ट देवता का स्मरण कर और रने के लिए तैयार हो जा। मेरे सामने आ जा और दिखा मुझे अपनी तलवार का तेज / आ ना।" वीरमती की आक्रोशपूर्ण ललकार सुन कर भी शांति बनाए रखते हुए चंद्रराजा ने . वनम्रता से वीरमंती से कहा, “पूज्य माताजी ! आप मुझ पर क्रोध मत कीजिए। मैंने तो आपके . ति कोई भी अपराध नहीं किया है। फिर भी आप मेरे प्रति क्रोध की भावना क्यों रखती हैं, यह o मेरी समझ में ही नहीं आता है ! जरा सोचिए तो कि क्या मेरे साथ युद्ध करने से आपकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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